सोमवार, मई 04, 2015

बुद्ध

मदों में, ओग्यूस्त रोदें के बागीचे में स्थापित बुद्ध
  की प्रतिमा, जिसे देख रिल्के को यह कविता लिखने
की प्रेरणा मिली 
मानो वे सुन रहे हों. मौन: कहीं दूर.…
हम चुप रह कर भी कुछ नहीं सुन पाते.
और वे हैं एक तारा जिन्हें घेरे हैं 
कई विशाल तारे जो हमें दिखाई नहीं देते. 

आह! वे सबकुछ हैं. 
क्या वाकई हमें लगता है कि वे देख पाएँगे हमें? 
क्या उन्हें आवश्यकता भी है?
हम करें साष्टांग उनके चरणों में प्रणाम तब भी 
वे किसी प्राणी की तरह गहन और शांत ही रहेंगे.

क्योंकि जो हमें उनके चरणों में गिरने पर बाध्य करता है 
वह उनके भीतर असंख्य वर्षों से परिक्रमाएँ कर रहा है. 
जो हम भोग रहे हैं, उसे वे भूल चुके हैं 
और जो प्रायः वर्जित हैं हमें, उसे वे जानते हैं.


-- रायनर मरीया रिल्के




 रायनर मरीया 
रिल्के ( Rainer Maria Rilke ) जर्मन भाषा के सब से महत्वपूर्ण कवियों में से एक माने जाते हैं. वे ऑस्ट्रिया के बोहीमिया से थे. उनका बचपन बेहद दुखद था, मगर यूनिवर्सिटी तक आते-आते उन्हें साफ़ हो गया था की वे साहित्य से ही जुड़ेंगे. तब तक उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित भी हो चुका था. यूनिवर्सिटी की पढाई बीच में ही छोड़, उन्होंने रूस की एक लम्बी यात्रा का कार्यक्रम बनाया. यह यात्रा उनके साहित्यिक जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. रूस में उनकी मुलाक़ात तोल्स्तॉय से हुई व उनके प्रभाव से रिल्के का लेखन और गहन होता गुया. फिर उन्होंने पेरिस में रहने का फैसला किया जहाँ वे मूर्तिकार रोदें के बहुत प्रभावित रहे.यूरोप के देशों में उनकी यात्रायें जारी रहीं मगर पेरिस उनके जीवन का भौगोलिक केंद्र बन गया. पहले विश्व युद्ध के समय उन्हें पेरिस छोड़ना पड़ा, और वे स्विटज़रलैंड में जा कर बस गए, जहाँ कुछ वर्षों बाद ल्यूकीमिया से उनका देहांत हो गया. कविताओं की जो धरोहर वे छोड़ गए हैं, वह अद्भुत है. यह कवितांश 'न्यू पोएम्ज़' से है. 
इस कविता का जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद ल्यूक फिशर व लुट्ज़ नफ़ेल्ट ने किया है. 
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

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