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एट द कैफे-कॉन्सर्ट, एदुआर माने At the Cafe-Concert, Edouard Manet |
ऐसा कोई नहीं है
जिसने पढ़ा हो मेरे कॉफ़ी के प्याले का तल और
न लगाया हो अनुमान कि तुम ही मेरी प्यार हो,
न लगाया हो अनुमान कि तुम ही मेरी प्यार हो,
जिसने देखी हों मेरे हाथ की रेखाएँ
और न पढ़े हो तुम्हारे नाम के चारों अक्षर,
सबकुछ नकारा जा सकता है,
जिसे हम प्यार करते हैं सिवाय उसकी खुशबू के
सब कुछ छुपाया जा सकता है,
सिवाय हमारे भीतर चलती औरत की पदचाप के
हर चीज़ पर विवाद हो सकता है,
सिवाय तुम्हारे नारीत्व के.
यूँ इस तरह आने-जाने में
आखिर क्या होगा हमारा?
जब सभी कॉफ़ी-हॉउस पहचान चुके हैं हमारे चेहरे,
सब होटल दर्ज कर चुके हैं हमारे नाम,
और सारी पटरियां हो चुकी है परिचित
हमारे क़दमों के संगीत से?
हम दुनिया के सामने अनावृत हैं
किसी समुद्र की ओर खुलती बालकनी की तरह,
कांच के कटोरे में तैरती दो सोन-मछलियों की तरह,
साफ़-साफ़ दिखाई देते हैं.
-- निज़ार क़ब्बानी
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद लेना जाय्युसी और जेरेमी रीड ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़