शुक्रवार, मार्च 02, 2012

वो जो मेरे भीतर चलती है

एट द कैफे-कॉन्सर्ट, एदुआर माने
At the Cafe-Concert, Edouard Manet

ऐसा कोई नहीं है 
जिसने पढ़ा हो मेरे कॉफ़ी के प्याले का तल और
न लगाया हो अनुमान कि तुम ही मेरी प्यार हो,
जिसने देखी हों मेरे हाथ की रेखाएँ 
और न पढ़े हो तुम्हारे नाम के चारों अक्षर,
सबकुछ नकारा जा सकता है,
जिसे हम प्यार करते हैं सिवाय उसकी खुशबू के
सब कुछ छुपाया जा सकता है,
सिवाय हमारे भीतर चलती औरत की पदचाप के 
हर चीज़ पर विवाद हो सकता है,
सिवाय तुम्हारे नारीत्व के.

यूँ इस तरह आने-जाने में 
आखिर क्या होगा हमारा?
जब सभी कॉफ़ी-हॉउस पहचान चुके हैं हमारे चेहरे,
सब होटल दर्ज कर चुके हैं हमारे नाम,
और सारी पटरियां हो चुकी है परिचित 
हमारे क़दमों के संगीत से?
हम दुनिया के सामने अनावृत हैं
किसी समुद्र की ओर खुलती बालकनी की तरह,
कांच के कटोरे में तैरती दो सोन-मछलियों की तरह,
साफ़-साफ़ दिखाई देते हैं.


-- निज़ार क़ब्बानी



 निज़ार क़ब्बानी ( Nizar Qabbani )सिरिया से हैं व अरबी भाषा के कवियों में उनका विशिष्ट स्थान है. उनकी सीधी सहज कविताएँ अधिकतर प्यार के बारे में हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या वे क्रन्तिकारी हैं, तो उन्होंने कहा -- अरबी दुनिया में प्यार नज़रबंद है, मैं उसे आज़ाद करना चाहता हूँ. उन्होंने 16 वर्ष की आयु से कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थीं, और उनके 50 से अधिक कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. उनकी कविताओं को कई प्रसिद्ध अरबी गायकों ने गया है, जिन में मिस्र की बेहतरीन गायिका उम्म कुल्थुम भी हैं, जिनके गीत सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद लेना जाय्युसी और जेरेमी रीड ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़