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द स्कूलबॉय, विन्सेंट वान गोग The Schoolboy, Vincent Van Gogh |
अपना रंगों का डिब्बा मेरे सामने रख
मेरा बेटा मुझ से एक पंछी बनाने को कहता है.
स्लेटी रंग में ब्रश डुबोकर मैं बनाता हूँ
छड़ों और तालों वाला एक चौकोर.
उसकी आँखों में आश्चर्य भर आता है :
"...मगर ये तो जेल है, पिताजी,
आप को क्या पंछी बनाना नहीं आता? "
और मैं उससे कहता हूँ :
बेटा, माफ़ कर दो मुझे,
मैं पंछियों का आकार ही भूल चुका हूँ.
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मेरे बिस्तर पर सिरहाने बैठा मेरा बेटा
मुझे कविता सुनाने को कहता है.
एक आंसू मेरी आँख से तकिये पर गिरता है.
मेरा बेटा उसे चाट लेता है, और आश्चर्यचकित हो कहता है :
" मगर यह तो आंसू है, पिताजी, कविता नहीं! "
और मैं उससे कहता हूँ :
" मेरे बच्चे, जब तुम बड़े हो जाओगे
और अरबी कविता का दीवान पढ़ोगे
तो तुम पाओगे कि शब्द और आंसू जुड़वा ही हैं
और अरबी कविता और कुछ नहीं
लिखती उँगलियों का रोया हुआ आंसू है.
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मेरा बेटा अपने पेन और अपना क्रेयान का डिब्बा
मेरे सामने रखता है
और मुझ से अपने लिए एक वतन बनाने को कहता है.
मेरे हाथों में ब्रश कांपता है,
और रोते-रोते मैं ढह-सा जाता हूँ.
-- निज़ार क़ब्बानी
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद लेना जाय्युसी और नाओमी शिहाब नाए ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़