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| सेल्फ पोर्ट्रेट, मार्क शगाल Self Portrait, Marc Chagall |
ठण्ड के मारे खोपड़ी झनझना रही है.
कोई बेधड़क होकर मुंह नहीं खोलता.
तुम्हारे जूते की ऐड़ी की तरह
समय मुझे घिस देता है.
जीवन पा लेता है विजय जीवन पर.
आवाज़ मंद होती जाती है.
कुछ हमेशा खोया ही रहता है.
उसे याद करने की फुर्सत बिलकुल नहीं है.
तुम जानते हो, पहले सब बेहतर था.
लेकिन कोई तुलना नहीं की जा सकती
कि पहले खून कैसे फुसफुसाता था
और अब कैसे फुसफुसाता है.
साफ़ है कि कोई तो प्रयोजन है
जो हिला रहा है इन होंठों को.
पेड़ की फुनगी खिलखिलाती है
और खेल जाती है
कुल्हाड़ियों के दिन से.
-- ओसिप मंदेलश्ताम
ओसिप मंदेलश्ताम ( Osip Mandelstam )रूसी कवि व निबंधकार थे और विश्व साहित्य में भी उनकी गीतात्मक कविताओं का विशिष्ट स्थान है. वे यहूदी थे और उनका परिवार पोलिश मूल का था, मगर वे सेंट पीटर्सबर्ग में बड़े हुए. स्कूल के समय से ही वे कविता लिखने लगे थे. उन्होंने अपने समकालीन रूसी कवियों के साथ मिल कर 'एक्मेइज़म' ( Acmeism ) की स्थापना की. 22 वर्ष की आयु में उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ -- द स्टोन. जब उनकी कविताओं में रूसी क्रांति के दिग्भ्रमित होने का दुःख छलकने लगा, तो स्तालिन ने उन्हें निर्वासित कर दिया. उनके अनेक कविता व निबंध संग्रह प्रकाशित हुए व उनकी कविताओं का खूब अनुवाद भी किया गया है.
इस कविता का मूल रशियन से अंग्रेजी में अनुवाद क्लेरन्स ब्राउन व डब्ल्यू एस मर्विन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
