गुरुवार, जून 21, 2012

मैं ट्रेन से उतरा

सेंट लाज़ार स्टेशन, अराइवल ऑफ़ अ ट्रेन,
क्लौद  मोने
Saint-Lazare station, Arrival of a Train,
Claude Monet
मैं ट्रेन से उतरा
और 
उस आदमी को अलविदा कहा  
जिससे मैं मिला था.
हम अठारह घंटे साथ रहे थे 
और हमारे बीच हुई थी सुखद बातचीत,
यात्रा का साथ था,
और मुझे दुःख था ट्रेन से उतरने का, 
खेद था छोड़ के चले आने का 
इस संयोग से बने मित्र को,
जिसका नाम तक मैं नहीं जान पाया.
मैं भीगता महसूस कर रहा था
अपनी आँखों को...
हर विदाई एक मृत्यु है.
हाँ, हर विदाई एक मृत्यु है.
उस ट्रेन में जिसे हम जीवन कहते हैं,
हम सब संयोगिक घटनाएँ हैं
एक-दूसरे के जीवन की ,
और हमें दुःख होता है जब उतरने का समय आता है.

वह सब जो मानवीय है मुझे प्रभावित करता है, क्यूंकि मैं एक मनुष्य हूँ.
वह सब जो मानवीय है मुझे प्रभावित करता है, इसलिए नहीं कि मुझे 
मानवीय भावों या मानवीय मतों से लगाव है 
परन्तु इसलिए कि स्वयं मानवता के साथ मेरा असीम संसर्ग है.

वह नौकरानी जिसका बिलकुल मन नहीं था जाने का,
याद करके रोती है 
उस घर को जहाँ उस के साथ दुर्व्यवहार किया गया...

ये सब, मेरे मन में, है मृत्यु और दुनिया का दुःख.
ये सब जीता है, क्यूंकि वह मरता है, मेरे मन में .

और मेरा मन पूरे ब्रह्माण्ड से बस ज़रा-सा बड़ा है.


-- फेर्नान्दो पस्सोआ ( आल्वरो द कम्पोस )

 

  फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने आल्वरो द कम्पोस ( Álvaro de Campos )के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नामों या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो यह है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग  जीवनी, दर्शन, स्वभाव, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ  के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने  मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्रेरी में इनके सम्पादन का काम आज भी जारी है.
इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.

इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़