रविवार, जनवरी 08, 2012

सपना

टू साईंप्रेसिज़, विन्सेंट वान गोग
Two Cypresses, Vincent Van Gogh

मैं जाग गया. क्या वह उसकी सांस थी या मेरी अपनी
जिस ने मेरे सपने के कांच को कुहासे से ढँक दिया था?
मेरा मन पहुँच जाता है समय से परे कहीं ...
बगीचे में सरू के पेड़ की काली लौ,
मैदान में नीम्बू की कलियों की खुशबू...
और फिर बादलों को कुछ चीरता है,
और उसकी धूप और बारिश की लालटेन में 
दुनिया उजली हो जाती है, एक आकस्मिक इन्द्रधनुष;
और फिर सब का सब, उल्ट जाता है, 
हो जाता है बहुत छोटा, दिखता है 
उस के काले केशों पर पड़ी बारिश की हर बूँद में !
और मैं उसे जाने देता हूँ फिर से
हवा में उड़ते बुलबुले की तरह...



-- डान पेटरसन


डान पेटरसन ( Don Paterson ) स्कॉटलैंड के कवि,लेखक  व संगीतकार हैं. वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेंट एंड्रूज़ में अंग्रेजी पढ़ाते हैं, लन्दन के प्रकाशक 'पिकाडोर' के लिए पोएट्री एडिटर हैं और एक बेहतरीन जैज़ गिटारिस्ट हैं . अपने पहले कविता संकलन 'निल निल' से ही उन्हें पहचाना जाने लगा व अवार्ड मिलने लगे. अपने संकलन ' गाडज़ गिफ्ट टू विमेन ' के लिए उन्हें टी एस एलीअट प्राइज़ प्राप्त हुआ. उनके एक और संकलन 'लैंडिंग लाईट ' को विटब्रेड पोएट्री अवार्ड व फिर से टी एस एलीअट प्राइज़ प्राप्त हुआ. उन्होंने दूसरी भाषाओँ से अंग्रेजी में बहुत अनुवाद भी किया है जिन में से सबसे उल्लेखनीय स्पेनिश कवि अंतोनियो मचादो व जर्मन कवि रिल्के की रचनाएँ हैं. उन्होंने कई कविता संकलनों का संपादन किया है, नाटक लिखे हैं व विशेष रूप से रेडियो नाटक लिखे हैं. यह कविता उनके संकलन 'आईज ' से है, जिसे  स्पेनिश कवि अंतोनियो मचादो की कविताओं का अनुवाद भी कहा जा सकता है, या कहा जा सकता है की ये कविताएँ, उनकी कविताओं से प्रेरित हैं.

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़