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लैंडस्केप, पॉल गौगें Landscape, Paul Gauguin |
कल रात
मुझसे
बारिश
हौले-से बोली,
कितना आनंद है
चपल बादल से इस तरह
गिरते आने में,
धरती पर एक बार फिर
नई तरह से
उल्लासित होने में !
लोहे की महक लिए
यही कह रही थी वो,
गिरते-गिरते,
और फिर समुद्र के सपने की तरह
टहनियों में
और नीचे घास में
विलीन हो गयी.
फिर सब समाप्त हो गया.
आकाश साफ़ हो गया.
मैं एक पेड़ के नीचे
खड़ी थी.
वह पेड़
पुलकित पत्तों वाला पेड़ था,
और उस पल
मैं वही थी जो मैं हूँ,
और आकाश में तारे थे
जो उस पल वही थे जो वे हैं
जिस पल
मेरे दाहिने हाथ ने
मेरे बाएँ हाथ को पकड़ा हुआ था
जिसने पेड़ को पकड़ा हुआ था
जो तारों से और मंद-मंद
बारिश से भरा हुआ था --
सोचो! सोचो!
उन लम्बी और आश्चर्यजनक
यात्राओं के बारे में
जो अभी बाकी हैं हमारी.
-- मेरी ओलिवर

इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़