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कप एंड ओरंजिज़, पियेर-ओगयूस्त रनोआ Cup and Oranges, Pierre-Auguste Renoir |
शुरू में
कुछ भी कहने की. एक
संतरे की फांकें ट्यूलिप के फूल-सी
खिली हुई हैं चीनी मिटटी की तश्तरी में.
कुछ भी हो सकता है.
बाहर सूरज बाँध चुका है
बोरिया-बिस्तर
और रात पूरे आकाश पर
नमक बिखेर चुकी है. मेरा मन
गुनगुना रहा है वह धुन
जो मैंने बरसों से नहीं सुनी!
निःशब्दता की ठंडी देह --
आओ गंध लें इसकी, खा लें इसे.
कई तरीके हैं
बना लेने के इस पल को
एक सुन्दर बाग़
ताकि आनंद हो केवल
यहाँ घूम आने में.
-- रीटा डव

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़