बुधवार, जुलाई 31, 2013

मैंने स्वयं को सादगी से जीना सिखाया

लैंडस्केप विद वुमन वाकिंग,
विन्सेंट वान गोग
Landscape with Woman Walking,
Vincent Van Gogh
मैंने स्वयं को सादगी से, समझदारी से जीना सिखाया, 
सिखाया आकाश की ओर आँखें उठाना, प्रार्थना करना, 
और सांझ ढलने से बहुत पहले घूमना 
ताकि थक जाएँ मेरी अनावश्यक चिंताएं.
जब घाटी में झाड़ियाँ सरसराती हैं 
और झड़ते हैं रक्त कोल रसभरी के लाल-पीले गुच्छे 
मैं रचती हूँ आनंद-भरी कविताएँ 
जीवन के ह्रास के बारे में, ह्रास और सौंदर्य के बारे में.
मैं लौटती हूँ. रोएँदार बिल्ली 
मेरा हाथ चाटती है, प्यार-से घुरघुराती है     
और झील के पास आराघर के बुर्ज पर 
आग की लपटें भड़कती हैं. 
छत पर उतरते किसी सारस की पुकार ही केवल 
तोडती है कभी-कभी मौन को. 
अगर तुम अब मेरे द्वार पर दस्तक दो 
तो शायद मैं सुन ही ना पाऊँ 


-- आना आख्मतोवा 



Requiem
                                                                                                                                                                                          



आना आख्मतोवा 20 वीं सदी की जानी-मानी रूसी कवयित्री हैं. वे 24 वर्ष की थी जब उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ और अगले 7 वर्षों में उनके 4 संकलन और प्रकाशित हुए. वे 'आर्ट फॉर आर्ट ' की समर्थक थी. मगर रूसी क्रांति के बाद, लेखकों, कवियों, चित्रकारों की स्वंत्रता में बाधा आ गई. 7 वर्ष तक उन्हें कुछ प्रकाशित करने की अनुमति नहीं दी गई. हालाँकि उन्होंने देशभक्तिपूर्ण कविताएँ सरकारी मैगजीनों में छपवायीं, मगर उनकी दूसरी कविताओं को प्रकाशित नहीं होने दिया गया. उनकी सबसे प्रसिद्द कविताएँ -- रिक्वीम और पोएम विदाउट अ हीरो, अपने देश के राजनैतिक माहौल व रूस की काम्यनिस्ट सरकार के बारे में हैं.
इस कविता का मूल रशियन से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड मक्केन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद रीनू तलवाड़

गुरुवार, जुलाई 25, 2013

सब भूल चुका है

वुमन विद डव, मारी लौरौन्सें
Woman with Dove, Marie Laurencin
कसम खाता हूँ मुझे उसका नाम तक याद नहीं है,
मगर जानता हूँ उसे क्या कह कर पुकारूँ: मरिया 
कवि जैसा दिखने के लिए ही नहीं केवल, लौटा लाने के 
लिए उस कसबे को, और उसके एकमात्र धूल-भरे चौक को.  
वो भी क्या दिन थे, सच! मैं था एक बेढंगा-सा लड़का,
वह एक ज़र्द चेहरे वाली गंभीर-सी लड़की 
एक दिन, जब मैं स्कूल से घर लौटा तो पता चला 
कि उसकी मृत्यु हो चुकी है मगर उसमें उसकी कोई गलती नहीं थी,
इस कहानी को सुनकर मैं इतनी बुरी तरह से हिल गया 
कि मेरी आँख में से एक आँसू बह निकला.
आँसू!…मेरी आँख से, जबकि मुझे तो हमेशा 
अविचलित रहने वाला लड़का समझा जाता है.
अगर मैं इस कहानी को, जैसी मुझे उस दिन 
सुनाई गई थी, सच मानना चाहूँ,
तो मुझे एक बात का विश्वास करना होगा:
कि वह अपनी आँखों में मेरा नाम लिए मरी थी,
जो कि चक्कर में डाल देने वाली बात है, 
क्योंकि उतनी निकटता तो हम में कभी थी ही नहीं;
वह केवल एक मिलनसार मित्र थी.
हमारी दोस्ती में एक औपचारिक लहज़ा था,
सुरक्षित दूरी थी:
मौसम की बातें, अटकलें लगाना कि 
अबाबील वापिस घर कब लौटेंगी.
मेरी उस से पहचान हुई उस छोटे-से कसबे में ( क़स्बा 
जो अब जल कर राख हो चुका है)
मगर मैं समझ गया था कि जो वह है उस से अधिक वह 
कभी कुछ नहीं होगी: एक उदास, विचारमग्न लड़की.
यह सब मैं इतना साफ़-साफ़ देख सकता था 
कि मैंने उसे दिया एक दैवी नाम -- मरिया 
दुनिया को देखने का मेरा तरीका ऐसा है जो 
हमेशा सत्य के तल तक पहुँचता है. 
शायद उस एक बार बस मैंने उसे चूमा था,
मगर वैसे जैसे दोस्त चूमते हैं एक-दूसरे को, 
बिना पूर्व विचार के और इतना तात्कालिक था वह 
कि उसके कोई और मायने तो हो ही नहीं सकते थे. 
अस्वीकार नहीं कर सकता कि मुझे अच्छा लगता था 
उसका साथ, उसकी शांत अस्पष्ट-सी उपस्थिति 
ऐसी थी जैसे गमले में खिले फूलों 
से आती सौम्य-सी अनुभूति.
उसकी मुस्कान में छिपी-झलकती गहराई 
को मैं कम नहीं आंक सकता  
ना ही अनदेखा कर सकता हूँ कि कैसे वह पत्थरों तक पर 
छोड़ जाती थी एक सुखदायक प्रभाव.
एक चीज़ और स्वीकार करना चाहता हूँ: उसकी 
आँखें रात की सच्ची कहानी कहती थीं.
मैं इन सब बातों को स्वीकार कर रहा हूँ, इस भरोसे पर 
कि आप फिर भी मेरी बात समझेंगे: किसी बीमार मौसी 
के लिए मन में जागी अस्पष्ट-सी संवेदना के सिवाय 
मैंने उसे किसी और तरह से नहीं चाहा.
मगर फिर भी, ऐसा हुआ. मगर फिर भी,
और यह बात मुझे आज तक हैरान करती है,
वह विस्मित करने वाली, व्याकुल करने वाली घटना घटी:
वह अपनी आँखों में मेरा नाम लिए मरी थी.
वह लड़की, वह निर्मल बहुल गुलाब,
वह लड़की, जो रोशनी रच सकती थी.
वे ठीक कहते थे, अब जान गया हूँ मैं, वे लोग 
जिनका जीवन एक अंतहीन शिकायत है
कि यह जो कामचलाऊ दुनिया है जिसमें हम रहते हैं 
इसका मोल एक टूटी टोकरी जितना भी नहीं. 
जीवन से अधिक सम्मान तो कब्र का होता है 
अधिक मूल्य होता है ज़ंग-लगी कील का. 
कुछ भी सच्चा नहीं है, कुछ सदा नहीं रहता, यहाँ 
तक कि  उसको देख पाने के लिए उठाई तकलीफ़ भी नहीं.
आज है चटकीले नीले आकाश वाला बसंती दिन 
मुझे लगता है कि मैं कविता के मारे मर जाऊँगा.
और वह मेरी प्यारी उदास-सी लड़की --
मुझे उसका नाम तक याद नहीं.   
केवल इतना जानता हूँ कि वह इस दुनिया से ऐसे हो कर गुज़री 
जैसे कोई कबूतर पंख फड़फड़ाता हुआ पास से निकल जाता है. 
जीवन में हर चीज़ की तरह,  न चाहते हुए भी,
मैं धीरे-धीरे उसे भूल गया. 


--  नीकानोर पार्रा




 नीकानोर पार्रा ( Nicanor Parra ) न सिर्फ चिली के सब से लोकप्रिय कवि माने जाते हैं, बल्कि पूरे लातिनी अमरीका में उनका प्रभाव है, और स्पेनिश के महत्वपूर्ण कवियों में उन्हें गिना जाता है. वे स्वयं को विरोधी कवि ( antipoet ) कहते हैं क्योंकि वे कविता की सामान्य परम्पराओं का विरोध करते हैं. अक्सर कविता-पाठ के बाद वे कहा करते थे  -- मैं अपना कहा वापिस लेता हूँ. लातिन अमरीकी साहित्य की परिष्कृत भाषा छोड़ उन्होंने एक ठेठ  स्वर अपनाया. उनका पहला कविता संकलन "पोएम्ज़ एंड ऐंटीपोएम्ज़ " न केवल स्पेनिश कविता का प्रभावी संग्रह है बल्कि लातिन अमरीकी साहित्य का महत्त्वपूर्ण मीलपत्थर भी है. उनकी कविताएँ ऐलन गिन्ज़बर्ग जैसे अमरीकी बीट कवियों की प्रेरणा बनी. वे कई बार नोबेल प्राइज़ के लिए नामित किए गए हैं. 2011 में उन्हें स्पेनिश भाषा एवं साहित्य का उच्चतम पुरुस्कार 'सेर्वौंत प्राइज़' प्राप्त हुआ.. यह कविता उनके संकलन 'पोएमॉस इ अंती
पोएमॉस' से है. 
इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद नाओमी लिंटस्ट्रोम ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़



  

रविवार, जुलाई 21, 2013

सुबह

लैंडस्केप, पॉल गोगैं
Landscape, Paul Gauguin

अल्लसुबह के सपनें, धुंध,
खिडकियों पर बजती बारिश 
और अगली सड़क से मुर्गे की बांग --
सब स्मृति के तल को कहीं छू जाते हैं,
याद दिलाते हैं बचपन की उन गुनगुनी सुबहों की.
अनंतता के कई रूप होते हैं, कई आवाजें.
समय-समय पर वह तुम्हें आभास कराती है 
अपने होने का -- बारिश की एक बूँद में, एक बांग में, 
लाइलक फूलों की सुगंध में,
स्वप्न देखने और जागने के बीच, दो स्वप्नों के बीच:
और जिसे हम विस्तार और समय कहते हैं 
वे अचानक खो देते हैं अपने मायने, 
बन जाते हैं एक मुर्गे की बांग 
या एक नदी जिस पर सुबह की धूप झलकती है 
और अलोप हो जाते है फिर जैसे दिन के प्रकाश में धुंध 
और दिवास्वप्नों में रात को देखे स्वप्न. 



-- यान काप्लिन्स्की 



यान काप्लिन्स्की ( Jaan Kaplinski )एस्टोनिया के कवि, भाषाविद व दार्शनिक हैं व यूरोप के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं. वे अपने स्वतंत्र विचारों व वैश्विक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं. उनके कई कविता-संग्रह, कहानियां, लेख व निबंध प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने कई भाषाओँ से कई भाषाओँ में अनुवाद किये है व उनके स्वयं के लेखन का भी कई भाषाओँ में अनुवाद हुआ है. यह कविता उनके संकलन 'ईवनिंग ब्रिनग्ज़ एवरीथिंग बैक ' से है.
इस कविता का मूल एस्टोनियन से अंग्रेजी में अनुवाद फियोना सैम्प्सन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

गुरुवार, जुलाई 18, 2013

घड़ियाँ

स्टिल लाइफ विद ओरंजिज़, इल्या माशकोव
Still life with Oranges, Ilya Mashkov
भला घड़ी हमारे किस 
काम की?

अगर हम  धोते हैं सफ़ेद कपडे:
दिन होता है

गहरे रंग के कपड़े:
रात होती है  

अगर तुम चाक़ू से कर देते हो 
संतरे के दो टुकड़े:
दिन 

अपनी उँगलियों से खोलते हो अगर तुम 
पकी हुई अंजीर:
रात 

अगर हम छलकाते हैं पानी:
दिन 
फैलाते हैं मदिरा अगर हम:
रात 

जब हम सुनते हैं टोस्टर का अलार्म 
या गाने का प्रयास करते 
छोटे से जानवर-सी केतली को:
दिन 

जब हम खोलते हैं कुछ धीमी किताबें 
और शराब, सिगरेट और मौन की कीमत पर 
उन्हें प्रज्ज्वलित रखते हैं:
रात 

अगर हम चाय में चीनी मिलाते हैं:
दिन 

चाय फीकी ही रहने देते हैं अगर:
रात 

अगर हम घर को झाड़ते-बुहारते हैं:
दिन 

गीले कपडे से उसको पोंछते है अगर:
रात 

अगर हमें होती हैं माइग्रेन, खाज, एलर्जी:
दिन 

होता है हमें बुखार, ऐंठन, सूजन अगर:
रात 

एस्प्रिन, एक्स-रे, पेशाब टेस्ट:
दिन 

पट्टियाँ, दबाना, लेप:
रात 

अगर मैं जमे हुए शहद को पिघलने के लिए धीमी आंच पर चढ़ाऊँ 
या गिलास साफ़ करने के लिए नीम्बुओं का इस्तेमाल करूँ:
दिन 

सेब खाने के बाद 
बस ऐसे ही मैं रख लूँ अगर उनका गहरा जामुनी लिफाफा:
रात 

अगर मैं अण्डों की सफेदी को फेंट-फेंट कर बर्फ बना दूँ:
दिन 

बड़े-बड़े चुकंदर पकाऊँ मैं अगर:
रात 

अगर हम पेंसिल से लिखे लाइनदार कागज़ पर:
दिन 

अगर हम मोड़ दें पन्नों को या बना दें मोड़ने का निशान:
रात 

(चोटियाँ और विस्तार:
दिन 

परतें और सिलवटें:
रात)

अगर तुम भूल जाओ रख कर अवन में पीला 
केक:
दिन 

अगर तुम छोड़ दो उबलने के लिए पानी को 
अकेला:
रात 

अगर खिड़की से समुद्र दिखता है शांत,
सुस्त और चिकना 
जैसे हो तेल की गढैया:
दिन 

अगर वह उग्र है 
पागल कुत्ते-सा 
झाग उगल रहा है:
रात 

अगर एक पेंगुइन पहुँच जाए ब्राज़ील के इपानेमा में 
और गर्म रेत पर लेट कर महसूस करे अपने सर्द दिल का 
उबलना:
दिन 


अगर भाटे के समय एक व्हेल मछली अटक जाए धरा पर 
और ओपेरा में जैसे गाते हैं वैसे ही गाते-गाते 
मर जाए, साँवली-सी, भारी: 
रात 

अगर तुम धीमे-धीमे खोलती हो 
अपने सफ़ेद ब्लाउज़ के बटन:
दिन 

अगर हम निर्वस्त्र होते हैं हड़बड़ी में 
बनाते हुए अपने आस-पास कपड़ों का उत्कट घेरा:
रात 

अगर एक चमकीला हरा कीड़ा बार-बार टकराता है
कांच से:
दिन 

अगर एक मधुमक्खी रति-क्रिया से दिग्भ्रमित 
कमरे के चक्कर काटती है:
रात 

भला घड़ी हमारे किस 
काम की?


-- एना मार्चीस मर्केस



 एना मार्चीस मर्केस (Ana Martins Marques) ब्राज़ील की कवयित्री हैं व पुर्तगाली भाषा में लिखती हैं. उन्होंने मीनास जेराइस विश्वविद्यालय से तुलनात्मक साहित्य में पी एच डी प्राप्त की है. अभी तक उनके दो कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं -- "आ वीदा सुबामारीना" व "दा आर्चा दाइस आह्रमाजीलियास". अपने दूसरे कविता संकलन के लिए उन्हें ब्राज़ील के राष्ट्रीय पुस्तकालय से साहित्य  का महत्वपूर्ण पुरूस्कार प्राप्त हुआ था व पोर्तुगल टेलिकॉम लिटरेरी अवार्ड की शार्ट-लिस्ट में भी वह संकलन शामिल था.
इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद एलिजा वोउक़ अल्मीनो ने किया है. 
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 


सोमवार, जुलाई 15, 2013

सवार

सॉलीट्यूड, डाइयैन जॉनसन
Solitude, Diane Johnson
एक लड़के ने मुझे बताया था 
कि अगर वह अपने स्केट्स पर बहुत तेज़ी से दौड़ता है 
तो उसका अकेलापन उसे पकड़ नहीं पाता,

चैंपियन बनने का प्रयास करने के लिए 
इस से अच्छा कारण मैंने आज तक नहीं सुना.

किंग विलियम मार्ग पर तेज़ी से साइकिल चलाते हुए 
आज रात मैं जानने को उत्सुक हूँ कि 
क्या यह बात साइकलों पर भी लागू होती है.

कैसी विजय हो वह भी! अपने अकेलेपन को
कहीं पीछे, किसी गली के मोड़ पर हांफता छोड़ आना
जबकि उन्मुक्त बहते हुए तुम खो जाओ 
अचानक खिले एज़ेलिया फूलों के एक बादल में,
उन गुलाबी पंखुड़ियों के बीच जिन्होनें 
चाहे वे कितनी ही धीमी गति से झड़ी हों, 
कभी अकेलापन नहीं जाना है.


-- नाओमी शिहाब नाए 



 नाओमी शिहाब नाए ( Naomi Shihab Nye )एक फिलिस्तीनी-अमरीकी कवयित्री, गीतकार व उपन्यासकार हैं. वे बचपन से ही कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. फिलिस्तीनी पिता और अमरीकी माँ की बेटी, वे अपनी कविताओं में अलग-अलग संस्कृतियों की समानता-असमानता खोजती हैं. वे आम जीवन व सड़क पर चलते लोगों में कविता खोजती हैं. उनके 7 कविता संकलन और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक अवार्ड व सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अनेक कविता संग्रहों का सम्पादन भी किया है. यह कविता उनके संकलन ''फ़ुएल " से है. 

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

शुक्रवार, जुलाई 12, 2013

कविता उजाले की खोज में है

द नाईट वाचमैन हैज़ फालन अस्लीप,
कार्ल शपिटज़विग
The night watchman has fallen asleep,
Carl Spitzweg
कविता उजाले को खोजती है, 
वह राज-मार्ग है कविता 
जो हमें सबसे दूर तक ले जाता है. 
निराशा के क्षणों में हम उस उजाले को ढूंढते हैं 
दोपहर में, भोर के धुआंरों में, 
यहाँ तक कि बस में भी, किसी नवम्बर में, 
जब एक बूढा साधू हमारी बगल में बैठा ऊंघता है.

चाइनीज़ रेस्तरां का वेटर अचानक सुबकने लगता है 
और कोई समझ नहीं पाता ऐसा क्यों हुआ.
क्या पता यह भी कोई खोज हो, 
जैसे कि समुद्र तट पर वह पल,
जब क्षितिज पर प्रकट हुआ था एक अपहरक जहाज़
और अचानक रुक गया था, रुका रहा था बहुत देर तक. 
और गहन आनंद के पल भी 

और व्यग्रता के असंख्य पल भी.
मुझे देखने दो, मैं पूछता हूँ.
मुझे दृढ़ रहने दो, मैं कहता हूँ.
रात में एक ठंडी बारिश झरती है.
मेरे शहर की सडकों और गलियों में 
अन्धकार चुपचाप कड़ी मेहनत कर रहा है.
कविता उजाले की खोज में है.


-- आदम ज़गायेव्स्की




 आदम ज़गायेव्स्की पोलैंड के कवि, लेखक, उपन्यासकार व अनुवादक हैं. वे क्रैको में रहते हैं मगर इन दिनों वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो में पढ़ाते हैं. वहां एक विषय जो वे पढ़ाते हैं वह है उनके साथी पोलिश कवि चेस्वाफ़ मीवोश की कविताएँ. उनके अनेक कविता व निबंध संकलन छ्प चुके हैं, व अंग्रेजी में उनकी कविताओं व निबंधों का अनुवाद भी खूब हुआ है.
इस कविता का मूल पोलिश से अंग्रजी में अनुवाद क्लेर कवन्नाह ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

बुधवार, जुलाई 10, 2013

दोबारा नहीं

पासिंग समर, विलर्ड मेटकाफ़
Passing Summer, Willard Metcalf
कुछ भी कभी दोबारा नहीं हो सकता.
जिसका परिणाम है यह दयनीय तथ्य 
कि हम बिना किसी तैयारी के एकाएक यहाँ प्रस्तुत होते हैं 
और बिना अभ्यास का मौका मिले ही चल देते हैं.

चाहे तुम से मूर्ख कोई न हो 
चाहे धरती की सब से मूढ़ मति तुम्हारी हो,
तुम्हारे लिए छुट्टियों में अतिरिक्त कक्षाएं नहीं होंगी 
यह पाठ्यक्रम एक ही बार उपलब्ध होता है. 

कोई दिन बीते कल की नक्ल नहीं करता,
कोई दो रातें हूबहू एक ही तरह से 
हूबहू एक ही जैसे चुम्बनों से 
नही सिखातीं कि आनंद क्या है.

एक दिन, ऐसे ही न जाने कौन 
संयोग से तुम्हारा नाम लेता है:
मुझे लगता है जैसे एक गुलाब फेंका गया है
कमरे में, हर ओर रंग और खुशबू फैल जाते हैं.

अगले दिन, जबकि तुम यहाँ मेरे पास होते हो,
मेरी नज़र बार-बार घडी की ओर उठती है:
गुलाब? गुलाब? वह क्या हो सकता है?
क्या वह कोई फूल है या पत्थर?

क्यों हम, व्यर्थ ही में, एक शीघ्र व्यतीत हो जाने वाले दिन से 
इतना अधिक डर जाते हैं, दुखी हो जाते हैं?
आज तो हमेशा कल चला ही जाता है --
ऐसा ना कहना उसका स्वभाव है. 

अपने नक्षत्र तले, मुस्कुराहट और चुम्बन लिए, 
हम पसंद करते हैं बनाना एक सहमति,
हालाँकि पानी की दो बूंदों की तरह
एक-दूसरे से बहुत अलग हैं हम (इस पर सहमत हैं हम)


-- वीस्वावा शिम्बोर्स्का



 वीस्वावा शिम्बोर्स्का ( Wislawa Szymborska ) पोलैंड की कवयित्री, निबंधकार व अनुवादक हैं. उनकी युवावस्था लगभग संघर्ष में ही बीती -- द्वितीय विश्व-युद्ध और उसके पोलैंड पर दुष्प्रभाव, कम पैसे होने की वजह से पढाई छोड़ देना, छुट-पुट नौकरियां, पोलैंड में साम्यवाद का लम्बा दौर. इस सब के बावजूद उनकी साहित्यिक व कलात्मक गतिविधियाँ जारी रही. उन्होंने अख़बारों व पत्रिकाओं में मूलतः साहित्य  के विषय पर खूब लिखा. उन्होंने बहुत प्रचुरता में नहीं लिखा. उनकी केवल २५० कविताएँ प्रकाशित हुईं. लेकिन उनका काम इतना सराहनीय था की पूरे विश्व में पहचानी जाने लगी. 1996 में उन्हें नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी कविताओं व निबंधों का अनेक भाषाओँ में अनुवाद किया गया है. 
इस कविता का मूल पोलिश से अंग्रेजी में अनुवाद स्तानिस्वाव बरंजाक व  क्लेर कावानाह ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

सोमवार, जुलाई 08, 2013

ब्लैकवाटर तालाब पर

द पोंड एट मोँयेरोँ, क्लौद मोने
The Pond at Montgeron, Claude Monet
रात भर की बारिश के बाद 
ब्लैकवाटर तालाब में पानी की हलचल थम चुकी है.
मैं अंजुरी भरती हूँ. बहुत देर तक 
पीती हूँ पानी. उसका स्वाद है 
पत्थर जैसा, पत्तों और आग जैसा. मेरी देह में 
ठंडे सोते-सा गिरता है वह, जगाता है मेरी हड्डियों को. 
अपने भीतर गहरे कहीं सुनती हूँ मैं 
उन्हें फुसफुसाते हुए
ओह यह जो अभी हुआ, इतना दिव्य,
यह क्या था ?


-- मेरी ओलिवर




Mary Oliver मेरी ओलिवर ( Mary Oliver )एक अमरीकी कव्यित्री हैं, जो 60 के दशक से कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. उनके 25 से अधिक कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं और बहुत सराहे गए हैं. उन्हें अमरीका के श्रेष्ठ सम्मान 'नेशनल बुक अवार्ड' व 'पुलित्ज़र प्राइज़' भी प्राप्त हो चुके हैं. उनकी कविताएँ प्रकृति की गुप-चुप गतिविधियों के बारे में हैं, जैसे वो धरती और आकाश के बीच खड़ीं सब देख रहीं हैं. और  उनकी कविताओं में उनका अकेलेपन  से प्यार, एक निरंतर आंतरिक एकालाप व स्त्री का प्रकृति से गहरा सम्बन्ध भी दिखाई देता है. 

इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

शनिवार, जुलाई 06, 2013

लौकिक स्वांग

बैक, आंद्रे देरैं
Back, Andre Derain



देह को याद है                           प्रेम भूल जाता है 
प्रेम का अर्थ चले जाना है           देह का अर्थ आना है 
प्रेम का अर्थ कल्पना करना है    देह का अर्थ पगला जाना है 
प्रेम, एक लौकिक स्वांग 
                                    ताकि अनंतता फैली रहे
                                    ताकि हम अपनी दुविधा शांत कर सकें 



-- अदुनिस




Adonis, Griffin Poetry Prize 2011 International Shortlist अली अहमद सईद अस्बार ( Ali Ahmed Said Asbar ), जो 'अदुनिस' ( Adonis )के नाम से लिखते हैं, सिरिया के प्रसिद्ध कवि व लेखक हैं. वे आधुनिक अरबी कविता के पथप्रदर्शक हैं, जिन्होंने पुरानी मान्यताओं से विद्रोह कर कविता के अपने ही नियम बनाये हैं. अब तक अरबी में उनकी 20से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनके अनेक कविता संग्रह अंग्रेजी में अनूदित किये जा चुके हैं. अभी हाल-फिलहाल में, अगस्त माह के आखिरी सप्ताह में ही उन्हें 2011 के  गेटे ( Goethe) पुरुस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें जल्द ही नोबेल प्राइज़ भी मिलेगा , साहित्य जगत में इसकी उम्मीद व अटकलें खूब हैं, वे कई बार नामित भी किये गए हैं. यह कविता उनके 2003 के संकलन 'सिंग्युलर इन अ प्लूरल फॉर्म' से है.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद खालेद मत्तावा ने किया है.
इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू  तलवाड़

गुरुवार, जुलाई 04, 2013

अकेलापन

स्केच, ओग्यूस्त रोदें
Sketch, Auguste Rodin

अकेलापन बारिश के जैसा होता है.
सांझ के पास-पास उठता है समुद्र से 
और सुदूर मैदानों से बढ़ता है आकाश की ओर,
जिस से उसका शाश्वत सम्बन्ध है. 
और आकाश से वह शहर पर गिरता है.

संध्या के झुटपुटे में नीचे बरसता है. 
जब गलियाँ सुबह की और मुड़ती हैं 
और जब प्रेमी, कुछ ना पाते हुए,
छोड़ते हैं एक-दूसरे की बाहों की असफलता को  
और जब एक ही बिस्तर पर सोना पड़ता है 
उन दोनों को जो एक-दूसरे से घृणा करते हैं:

तब अकेलापन नदियों के संग बहता है...



-- रायनर मरीया रिल्के 



 रायनर मरीया रिल्के ( Rainer Maria Rilke ) जर्मन भाषा के सब से महत्वपूर्ण कवियों में से एक माने जाते हैं. वे ऑस्ट्रिया के बोहीमिया से थे. उनका बचपन बेहद दुखद था, मगर यूनिवर्सिटी तक आते-आते उन्हें साफ़ हो गया था की वे साहित्य से ही जुड़ेंगे. तब तक उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित भी हो चुका था. यूनिवर्सिटी की पढाई बीच में ही छोड़, उन्होंने रूस की एक लम्बी यात्रा का कार्यक्रम बनाया. यह यात्रा उनके साहित्यिक जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. रूस में उनकी मुलाक़ात तोल्स्तॉय से हुई व उनके प्रभाव से रिल्के का लेखन और गहन होता गुया. फिर उन्होंने पेरिस में रहने का फैसला किया जहाँ वे मूर्तिकार रोदें के बहुत प्रभावित रहे.यूरोप के देशों में उनकी यात्रायें जारी रहीं मगर पेरिस उनके जीवन का भौगोलिक केंद्र बन गया. पहले विश्व युद्ध के समय उन्हें पेरिस छोड़ना पड़ा, और वे स्विटज़रलैंड में जा कर बस गए, जहाँ कुछ वर्षों बाद ल्यूकीमिया से उनका देहांत हो गया. कविताओं की जो धरोहर वे छोड़ गए हैं, वह अद्भुत है. यह कविता उनके संकलन 'बुक ऑफ़ इमेजिज़ ' से है.
इस कविता का जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद जोआना मेसी व अनीता बैरोज़ ने किया है. 
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़