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बर्च फोरेस्ट, कोंसटेनटिन युओन Birch Forest, Konstantin Yuon |
I
देह है कार्तिक की पूर्णिमा में नहाते भोज वृक्ष जैसी
ठन्डे आकाश को छूती.
इन वृक्षों में कोई लालसा नहीं है,
न भीगी काया, न पत्ते,
न भीगी काया, न पत्ते,
केवल हैं ठंडी आग की लपटों-से उठते ये नग्न तने.
II
पेड़ों में मेरी अंतिम सैर का समय हो गया है.
भोर होते ही
भोर होते ही
मुझे लौटना होगा जकड़े हुए खेतों की ओर,
एक आज्ञाकारी धरती के पास.
पेड़ हाथ बढ़ाते रहेंगे पूरी सर्दियाँ यूँ ही.
III
कितना आनंद है घूमने में इन नग्न वनों में.
चांदनी पत्तों-भरी टहनियों में अटक कर टूटती नहीं है .
पत्ते सब गिरे हुए हैं नीचे, छू रहे हैं भीगी धरती को,
फैला रहे हैं वह खुशबू जो तीतरों को पसंद है.
--- रोबर्ट ब्लाए

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़