गुरुवार, मई 12, 2011

मैंने तुम्हें चाहा, नहीं चाहा

स्टडी ऑफ़ पाइन ट्रीज़, विन्सेंट वान गोग
Study Of Pine Trees, Vincent Van Gogh
मैंने चाहा तुम्हें, 
नहीं तुम्हें नहीं चाहा.
मैंने वह चाहा 
जो पीछे से चलता आ रहा था.
हमारे लिए
रास्ते खुल जायेंगे.
जीवन ले जायेगा हमें
अपनी प्रकृति के पास.
पुरातन चीड़ के पेड़ तले
हम अपनी परछाइयाँ भूल जायेंगे,
वहीँ छाँव में बैठा छोड़ आयेंगे. 
हमारे रास्तों पर  
एक नया दिन निकलेगा.
अलग-अलग हैं हमारी परछाइयाँ --
वो गले नहीं मिलती,
ना ही पंछियों की बातों का
जवाब देती हैं.
मैंने कहा था -- याद करना हो 
तो परछाई को करना. 

-- महमूद दरविश 

 महमूद दरविश ( Mahmoud Darwish )एक फिलिस्तीनी कवि व लेखक थे जो फिलिस्तीन के राष्टीय कवि भी माने जाते थे. उनकी कविताओं में अक्सर अपने देश से बेदखली का दुःख प्रतिबिंबित होता है. उनके तीस कविता संकलन व आठ किताबें छप चुकी हैं. अपने लेखन के लिए, जिसका बीस भाषाओँ में अनुवाद भी हो चुका है, उन्हें असंख्य अवार्ड मिले हैं. फिलिस्तीनी लोगों के 'वतन' के लिए संघर्ष के साथ उनकी कविताओं का गहरा नाता है. जबकि उनकी बाद की कविताएँ मुक्त छंद में  लिखी हुईं और कुछ हद तक व्यक्तिगत हैं, वे राजनीती से कभी दूर नहीं रह पाए.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद फादी जूदह ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़