शुक्रवार, मार्च 30, 2012

निःशब्द दुनिया

द टेलीफोन, तमारा द लेम्पिका
The Telephone, Tamara de Lempicka
ताकि लोग अधिक झांकें 
एक-दूसरे की आँखों में,
और मूक लोग तुष्ट हो जाएँ,
एक प्रयास किया है 
सरकार ने, फैसला लिया है 
कि हर व्यक्ति को मिलेंगे केवल 
एक सौ सरसठ शब्द, हर रोज़.

जब फ़ोन बजता है, बिना हेलो कहे
मैं उसे कान से लगाता हूँ. रेस्तराँ में 
चिकन नूडल सूप की ओर कर देता हूँ इशारा.
खूब ढाल लिया है खुद को मैंने इस नयी चाल में.

देर रात, जब मैं करता हूँ फ़ोन
अपनी दूर-बसती प्रेमिका को 
गर्व से उसे कहता हूँ 
आज मैंने केवल उनसठ खर्च किये
बाकी बचाए हैं तुम्हारे लिए.

जब वो जवाब नहीं देती, मैं जान जाता हूँ 
कि वो अपने सारे शब्द इस्तेमाल कर चुकी है,
तो मैं धीमे-से फुसफुसाता हूँ आई लव यू 
बत्तीस गुणा तीन बार.
फिर दोनों कान से फोन लगाये बैठे रहते हैं
सुनते रहते हैं एक-दूसरे की साँसों की आवाज़.


--  जेफ्फ्री मकडेनिअल 


 जेफ्फ्री मकडेनिअल ( Jeffrey McDaniel ) एक अमरीकी कवि हैं. स्कूल के समय से ही वे साहित्यिक गतिविधियों से जुड़ने लगे थे. कॉलेज में वे कॉलेज की राष्ट्रिय साहित्य पत्रिका के सम्पादक थे. वे पोएट्री थियेटर व पोएट्री स्लेम जैसी गतिविधियों में भाग लेने लगे. पढाई पूरी करने के बाद उनका सारा समय लेखन, कविता और क्रिएटिव राइटिंग पढ़ाने में व उसे लोकप्रिय बनाने में बीतता है. वे पोएट्री इन कम्युनिटी प्रोजेक्ट्स से जुड़े हुए हैं और खासकर स्कूली छात्रों को कविता से जोड़ने के प्रयास में रत हैं. यह कविता उनके संकलन 'द फॉरगिवनेस परेड 'से है.
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़