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द सोअर (स्टडी ), विन्सेंट वान गोग The Sower (Study), Vincent Van Gogh |
कितनी दूर है मेरी रात
तुम्हारी रात से!
और कितनी और रातें,
ऊंचे पर्वतों-सी,
उठी हुई हैं इन दोनों के बीच.
तुम्हारी रात से!
और कितनी और रातें,
ऊंचे पर्वतों-सी,
उठी हुई हैं इन दोनों के बीच.
मैंने तुम्हारे लिए रास्ता भेजा था,
पर तुम नहीं मिले.
थक के लौट आया वो मेरे पास.
अपना गीत-हिरन भेजा था.
पर शिकारियों के निशानों से घायल,
लौट आया वो मेरे पास.
जाने कौन सी दिशा ली हवा ने,
जंगल में, दर्द की कंदराओं में भटक,
अंधी होकर
लौट आई वो मेरे पास.
एक निराश बारिश झर रही है.
कल सुबह-सुबह,
एक इन्द्रधनुष भेजूं क्या?
तुम्हे ढूँढने.
तुम्हे ढूँढने.
लेकिन वो, ख़ुशीयों-सा नादान,
एक ही पहाड़ पार कर पायेगा.
मैं स्वयं ही निकलूंगा रात में
ढूंढूंगा, ढूंढूंगा, ढूंढूंगा,
जैसे अँधेरे कमरे में हाथ टटोलता है,
ढूंढता है बुझे हुए दिए को.
-- विसार ज्हीटी

इस कविता का अल्बेनियन से अंग्रेजी में अनुवाद राबर्ट एलसी ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़