गुरुवार, जुलाई 18, 2013

घड़ियाँ

स्टिल लाइफ विद ओरंजिज़, इल्या माशकोव
Still life with Oranges, Ilya Mashkov
भला घड़ी हमारे किस 
काम की?

अगर हम  धोते हैं सफ़ेद कपडे:
दिन होता है

गहरे रंग के कपड़े:
रात होती है  

अगर तुम चाक़ू से कर देते हो 
संतरे के दो टुकड़े:
दिन 

अपनी उँगलियों से खोलते हो अगर तुम 
पकी हुई अंजीर:
रात 

अगर हम छलकाते हैं पानी:
दिन 
फैलाते हैं मदिरा अगर हम:
रात 

जब हम सुनते हैं टोस्टर का अलार्म 
या गाने का प्रयास करते 
छोटे से जानवर-सी केतली को:
दिन 

जब हम खोलते हैं कुछ धीमी किताबें 
और शराब, सिगरेट और मौन की कीमत पर 
उन्हें प्रज्ज्वलित रखते हैं:
रात 

अगर हम चाय में चीनी मिलाते हैं:
दिन 

चाय फीकी ही रहने देते हैं अगर:
रात 

अगर हम घर को झाड़ते-बुहारते हैं:
दिन 

गीले कपडे से उसको पोंछते है अगर:
रात 

अगर हमें होती हैं माइग्रेन, खाज, एलर्जी:
दिन 

होता है हमें बुखार, ऐंठन, सूजन अगर:
रात 

एस्प्रिन, एक्स-रे, पेशाब टेस्ट:
दिन 

पट्टियाँ, दबाना, लेप:
रात 

अगर मैं जमे हुए शहद को पिघलने के लिए धीमी आंच पर चढ़ाऊँ 
या गिलास साफ़ करने के लिए नीम्बुओं का इस्तेमाल करूँ:
दिन 

सेब खाने के बाद 
बस ऐसे ही मैं रख लूँ अगर उनका गहरा जामुनी लिफाफा:
रात 

अगर मैं अण्डों की सफेदी को फेंट-फेंट कर बर्फ बना दूँ:
दिन 

बड़े-बड़े चुकंदर पकाऊँ मैं अगर:
रात 

अगर हम पेंसिल से लिखे लाइनदार कागज़ पर:
दिन 

अगर हम मोड़ दें पन्नों को या बना दें मोड़ने का निशान:
रात 

(चोटियाँ और विस्तार:
दिन 

परतें और सिलवटें:
रात)

अगर तुम भूल जाओ रख कर अवन में पीला 
केक:
दिन 

अगर तुम छोड़ दो उबलने के लिए पानी को 
अकेला:
रात 

अगर खिड़की से समुद्र दिखता है शांत,
सुस्त और चिकना 
जैसे हो तेल की गढैया:
दिन 

अगर वह उग्र है 
पागल कुत्ते-सा 
झाग उगल रहा है:
रात 

अगर एक पेंगुइन पहुँच जाए ब्राज़ील के इपानेमा में 
और गर्म रेत पर लेट कर महसूस करे अपने सर्द दिल का 
उबलना:
दिन 


अगर भाटे के समय एक व्हेल मछली अटक जाए धरा पर 
और ओपेरा में जैसे गाते हैं वैसे ही गाते-गाते 
मर जाए, साँवली-सी, भारी: 
रात 

अगर तुम धीमे-धीमे खोलती हो 
अपने सफ़ेद ब्लाउज़ के बटन:
दिन 

अगर हम निर्वस्त्र होते हैं हड़बड़ी में 
बनाते हुए अपने आस-पास कपड़ों का उत्कट घेरा:
रात 

अगर एक चमकीला हरा कीड़ा बार-बार टकराता है
कांच से:
दिन 

अगर एक मधुमक्खी रति-क्रिया से दिग्भ्रमित 
कमरे के चक्कर काटती है:
रात 

भला घड़ी हमारे किस 
काम की?


-- एना मार्चीस मर्केस



 एना मार्चीस मर्केस (Ana Martins Marques) ब्राज़ील की कवयित्री हैं व पुर्तगाली भाषा में लिखती हैं. उन्होंने मीनास जेराइस विश्वविद्यालय से तुलनात्मक साहित्य में पी एच डी प्राप्त की है. अभी तक उनके दो कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं -- "आ वीदा सुबामारीना" व "दा आर्चा दाइस आह्रमाजीलियास". अपने दूसरे कविता संकलन के लिए उन्हें ब्राज़ील के राष्ट्रीय पुस्तकालय से साहित्य  का महत्वपूर्ण पुरूस्कार प्राप्त हुआ था व पोर्तुगल टेलिकॉम लिटरेरी अवार्ड की शार्ट-लिस्ट में भी वह संकलन शामिल था.
इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद एलिजा वोउक़ अल्मीनो ने किया है. 
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़