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द नाईट कैफे इन द प्लास लामारतीन इन आर्ल, विन्सेंट वान गोग The Night Cafe In The Place Lamartine In Arles, Vincent Van Gogh |
अजनबियों की गली में
एक छोटे कैफे-सा -- ऐसा है प्यार
...सब के लिए दरवाज़े खोले.
ऐसा कैफे जो मौसम के साथ-साथ
बढ़ता है, घटता है :
अगर खूब बारिश होती है
तो ग्राहक बढ़ जाते हैं,
मौसम ठीक होता है
तो कम होते हैं, सुस्त हो जाते हैं...
मैं यहाँ हूँ, अजनबी,
एक कोने में बैठा हुआ.
( तुम्हारी आँखों का रंग कैसा है?
तुम्हारा नाम क्या है?
मैं यहाँ तुम्हारे इंतज़ार में बैठा हूँ,
तुम पास से गुज़रोगी तो तुम्हें कैसे पुकारूं ?)
एक छोटा कैफे, ऐसा ही है प्यार.
मैं वाइन के दो प्याले मंगवाता हूँ
और तुम्हारी और अपनी सेहत का जाम पीता हूँ.
मैं दो टोपियाँ लिए हूँ
और एक छतरी. बारिश हो रही है.
अब और भी तेज़ हो रही है बारिश,
और तुम यहाँ नहीं आती.
आखिर में अपनेआप से कहता हूँ :
शायद वह, मैं जिसका इंतज़ार कर रहा था
मेरा इंतज़ार कर रही थी,
या किसी और का इंतज़ार कर रही थी,
या हम दोनों का इंतज़ार कर रही थी,
और न उस को ढूंढ पाई, न मुझ को.
वह कहती : यहाँ इंतज़ार कर रही हूँ तुम्हारा.
( तुम्हारी आँखों का रंग कैसा है? तुम्हारा नाम क्या है?
कैसी वाइन पसंद है तुम्हें? तुम पास से गुजारोगे
तो तुम्हे कैसे पुकारूं? )
एक छोटा कैफे, ऐसा ही है प्यार...
-- महमूद दरविश

इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद मोहम्मद शाईन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़