मंगलवार, जुलाई 12, 2011

एक छोटे कैफे-सा...ऐसा है प्यार

द नाईट कैफे इन द प्लास लामारतीन इन आर्ल, विन्सेंट वान गोग 
The Night Cafe In The Place Lamartine In Arles, Vincent Van Gogh

अजनबियों की गली में 
एक छोटे कैफे-सा -- ऐसा है प्यार
...सब के लिए दरवाज़े खोले.
ऐसा कैफे जो मौसम के साथ-साथ
बढ़ता है, घटता है :
अगर खूब बारिश होती है 
तो ग्राहक बढ़ जाते हैं,
मौसम ठीक होता है 
तो कम होते हैं, सुस्त हो जाते हैं...
मैं यहाँ हूँ, अजनबी,
एक कोने में बैठा हुआ.
( तुम्हारी आँखों का रंग कैसा है? 
तुम्हारा नाम क्या है?
मैं यहाँ तुम्हारे इंतज़ार में बैठा हूँ,
तुम पास से गुज़रोगी तो तुम्हें कैसे पुकारूं ?)
एक छोटा कैफे, ऐसा ही है प्यार.
मैं वाइन के दो प्याले मंगवाता हूँ 
और तुम्हारी और अपनी सेहत का जाम पीता हूँ.
मैं दो टोपियाँ लिए हूँ
और एक छतरी. बारिश हो रही है.
अब और भी तेज़ हो रही है बारिश, 
और तुम यहाँ नहीं आती.
आखिर में अपनेआप से कहता हूँ : 
शायद वह, मैं जिसका इंतज़ार कर रहा था 
मेरा इंतज़ार कर रही थी, 
या किसी और का इंतज़ार कर रही थी,
या हम दोनों का इंतज़ार कर रही थी, 
और न उस को ढूंढ पाई, न मुझ को.
वह कहती : यहाँ इंतज़ार कर रही हूँ तुम्हारा.
( तुम्हारी आँखों का रंग कैसा है? तुम्हारा नाम क्या है?
कैसी वाइन पसंद है तुम्हें? तुम पास से गुजारोगे
तो तुम्हे कैसे पुकारूं? )
एक छोटा कैफे, ऐसा ही है प्यार...


-- महमूद दरविश


 महमूद दरविश ( Mahmoud Darwish )एक फिलिस्तीनी कवि व लेखक थे जो फिलिस्तीन के राष्टीय कवि भी माने जाते थे. उनकी कविताओं में अक्सर अपने देश से बेदखली का दुःख प्रतिबिंबित होता है. उनके तीस कविता संकलन व आठ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. अपने लेखन के लिए, जिसका बीस भाषाओँ में अनुवाद भी हो चुका है, उन्हें असंख्य अवार्ड मिले हैं. फिलिस्तीनी लोगों के 'वतन' के लिए संघर्ष के साथ उनकी कविताओं का गहरा नाता है. जबकि उनकी बाद की कविताएँ मुक्त छंद में  लिखी हुईं और कुछ हद तक व्यक्तिगत हैं, वे राजनीती से कभी दूर नहीं रह पाए.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद मोहम्मद शाईन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़