रविवार, दिसंबर 16, 2012

जो महसूस करते हैं हम...

फायर पेंटिंग, ईव क्लाइन
Fire Painting, Yves Klein 

केवल वही है हमारे पास
जो महसूस करते हैं हम,
वह नहीं जो महसूस होता है.
स्वाभाविक है जाड़ों का व्याकुल कर देना
भाग्य की तरह स्वीकार कर लेते हैं हम उसे.
इच्छा है कि जाड़े चाहे जितना लिपटे धरती को
हमारे मनों से दूर रहें,
क्योंकि जाते हैं हम
एक प्रेम से दूसरे प्रेम,
या एक किताब से दूसरी किताब,
भाती है हमें यह क्षणिक तीव्र आग.



-- फेर्नान्दो पेस्सोआ ( रिकार्दो रेइस)



 फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने रिकार्दो रेइस ( Ricardo Reis )के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नामों या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो यह है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग  जीवनी, दर्शन, स्वभाव, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ  के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने  मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्रेरी में इनके सम्पादन का काम आज भी जारी है. यह कविता उनके संकलन 'ओड्ज़' से है.

इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़