शनिवार, दिसंबर 31, 2011

एक पल का पन्थ

क्लाक, मार्क शगाल
Clock, Marc Chagall

मैं विश्वास करता हूँ आम दिन में
वह जो यहाँ है इस पल 
और जो मैं भी हूँ.

मुझे वह अपने रास्ते जाता दिखाई नहीं देता 
मगर वह आया कैसा था 
वह भी मैंने नहीं देखा 

उसका विस्तार 
जो भी मुझे लगता है कि मैं जानता हूँ
और जो मेरे लिए वास्तविक है
उस से है कहीं बहुत आगे तक 

वह वर्तमान को उठा ले जाता है 
मगर वह कहाँ जाता है 
जब वह मुझ से दूर चला जाता है 

ऐसी कोई जगह नहीं जानता हूँ मैं 
जो है आज के दिन से बाहर 
मेरे आस-पास के अज्ञात को छोड़कर 

बस वही एक है जो लगता है उपस्थित, 
वही विद्यमान रहता है 
जिस चीज़ को भी मैं 'मेरी' कहता हूँ
उसी ने दी है उधार

यह भी 
कि जिस तरह से मैं विश्वास करता हूँ आज में 
वह जितनी भी देर यहाँ रहता है 
और जो मैं भी होता हूँ


-- डब्ल्यू एस मर्विन
W.S. Merwinडब्ल्यू एस मर्विन ( W S Merwin )अमरीकी कवि हैं व इन दिनों अमरीका के पोएट लॉरीअट भी हैं.उनकी कविताओं, अनुवादों व लेखों के 30 से अधिक संकलन प्रकाशित हो चुके हैं .उन्होंने दूसरी भाषाओँ के प्रमुख कवियों के संकलन, अंग्रेजी में खूब अनूदित किये हैं, व अपनी कविताओं का भी स्वयं ही दूसरी भाषाओँ में अनुवाद किया है.अपनी कविताओं के लिए उन्हें अन्य सम्मानों सहित पुलित्ज़र प्राइज़ भी मिल चुका है.वे अधिकतर बिना विराम आदि चिन्हों के मुक्त छंद में कविता लिखते हैं.यह कविता उनके संकलन 'द शैडो ऑफ़ सिरिअस ' से है.

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

गुरुवार, दिसंबर 29, 2011

तुम जो रहस्यवादी हो...

द किंगफिशर, विन्सेंट वान गोग
The Kingfisher, Vincent van Gogh 

तुम जो रहस्यवादी हो, हर चीज़ में ढूंढते हो मायने.
हर चीज़ के हैं तुम्हारे लिए अस्पष्ट अभिप्राय.
जो कुछ भी देखते हो तुम, उसमें है कुछ छिपा हुआ.
जो कुछ भी देखते हो तुम, देखते हो, कुछ और देखने के लिए.

मैं, जिसके पास हैं केवल देखने के लिए आँखें,
सब चीज़ों में देखता हूँ मायनों की अनुपस्थिति.
और यह देख कर, खुद से प्यार करता हूँ मैं,
क्योंकि 
एक चीज़ होने का अर्थ है, कुछ भी न होना.
एक चीज़ होने का अर्थ है  होना वश में किसी व्याख्या के.


--  फेर्नान्दो पेस्सोआ ( अल्बेर्तो काइरो )



 फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने अल्बेर्तो काइरो ( Alberto Caeiro )के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नाम या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो ये है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग जीवनी, स्वभाव, दर्शन, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्ररी में उन पन्नों की एडिटिंग का काम आज तक जारी है. यह कविता उनके संकलन 'द कीपर ऑफ़ शीप ' से है.
इस कविता का मूल पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़     

मंगलवार, दिसंबर 27, 2011

प्रवेश

अलेक्ज़ांदर पुश्किन एट द सीशोर, लिओनिद पास्तरनाक
Alexander Pushkin At The Seashore, Leonid Pasternak
जो कोई भी हो तुम, 
इस शाम में बाहर निकल के देखो.
जहाँ सब जाना-पहचाना है 
बाहर निकल के देखो उस कमरे से.
जो कोई भी हो तुम 
तुम्हारा घर आखिरी घर है 
उस दूरस्थ से पहले.
जो जाने-पहचाने से 
खुद को छुड़ाते-छुड़ाते कुछ अधिक ही 
थक गयी हैं, अपनी उन आँखों से, 
हौले-से उठाते हो तुम एक काला पेड़ 
और रख देते हो उसे आकाश के सामने: छरहरा, अकेला.
और ऐसे ही तुमने बना ली है एक दुनिया.
वह बड़ी है 
और एक शब्द की तरह, पक रही है अभी भी मौन में.
और भले ही तुम्हारा दिमाग गढ़ लेगा उसके मायने,
तुम्हारी आँखें जो भी देखती हैं 
उसे कोमलता से
छोड़ देती हैं, जाने देती हैं.


 -- रायनर मरीया रिल्के 



 रायनर मरीया रिल्के ( Rainer Maria Rilke ) जर्मन भाषा के सब से महत्वपूर्ण कवियों में से एक माने जाते हैं. वे ऑस्ट्रिया के बोहीमिया से थे. उनका बचपन बेहद दुखद था, मगर यूनिवर्सिटी तक आते-आते उन्हें साफ़ हो गया था की वे साहित्य से ही जुड़ेंगे. तब तक उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित भी हो चुका था. यूनिवर्सिटी की पढाई बीच में ही छोड़, उन्होंने रूस की एक लम्बी यात्रा का कार्यक्रम बनाया. यह यात्रा उनके साहित्यिक जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. रूस में उनकी मुलाक़ात तोल्स्तॉय से हुई व उनके प्रभाव से रिल्के का लेखन और गहन होता गुया. फिर उन्होंने पेरिस में रहने का फैसला किया जहाँ वे मूर्तिकार रोदें के बहुत प्रभावित रहे.यूरोप के देशों में उनकी यात्रायें जारी रहीं मगर पेरिस उनके जीवन का भौगोलिक केंद्र बन गया. पहले विश्व युद्ध के समय उन्हें पेरिस छोड़ना पड़ा, और वे स्विटज़रलैंड में जा कर बस गए, जहाँ कुछ वर्षों बाद ल्यूकीमिया से उनका देहांत हो गया. कविताओं की जो धरोहर वे छोड़ गए हैं, वह अद्भुत है. यह कविता उनके संकलन 'बुक ऑफ़ इमेजिज़ ' से है.
इस कविता का जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद जोआना मेसी व अनीता बैरोज़ ने किया है. 
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़