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सेल्फ-पोर्ट्रेट, मार्क शगाल Self-Portrait, Marc Chagall |
बिन बुलाए आया तुम्हारा ख्याल,
और रहा बहुत देर तक मेरे मन में.
मैं सोने चली गई,
सपनों में खूब देखा तुम्हें, खूब देखा.
उठी तो होंठों पर तुम्हारा ही नाम था,
नर्म, नमकीन, आँसुओं-सा,
उसके शब्दांशों का खनकता हुआ स्वर,
जैसे मंत्र फूंकता, जादू करता हुआ.
प्यार करना है जैसे एक जादुई नरक में जीना,
एक तीखी लपट उठती है तन में,
मन प्यासा-सा, दुबका हुआ,
शिकारी बाघ की तरह मारने को तैयार हो जाता है.
और इस जीवन में, जीवन से कहीं बृहद, सुन्दर,
तुम चले आए.
मैंने छुपा लिया खुद को अपने आम दिनों में,
दिनचर्या की ऊँची घास में, छलावरण वाले कमरों में.
तुम पसर गए मेरी निगाहों में, घूरते रहे मुझे
कभी किसी के चेहरे से, कभी बादलों के आकार से,
धरती को तरसते चाँद से, जो मुँह बाये मुझे देखता है
जब मैं खोलती हूँ बेडरूम का दरवाज़ा.
परदे हिलते हैं. जैसे एक उपहार,
एक छुआ जा सकने वाला स्वप्न,
देखो वो रहे तुम बिस्तर पर.
-- कैरल एन डफ्फी

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़