बुधवार, जुलाई 10, 2013

दोबारा नहीं

पासिंग समर, विलर्ड मेटकाफ़
Passing Summer, Willard Metcalf
कुछ भी कभी दोबारा नहीं हो सकता.
जिसका परिणाम है यह दयनीय तथ्य 
कि हम बिना किसी तैयारी के एकाएक यहाँ प्रस्तुत होते हैं 
और बिना अभ्यास का मौका मिले ही चल देते हैं.

चाहे तुम से मूर्ख कोई न हो 
चाहे धरती की सब से मूढ़ मति तुम्हारी हो,
तुम्हारे लिए छुट्टियों में अतिरिक्त कक्षाएं नहीं होंगी 
यह पाठ्यक्रम एक ही बार उपलब्ध होता है. 

कोई दिन बीते कल की नक्ल नहीं करता,
कोई दो रातें हूबहू एक ही तरह से 
हूबहू एक ही जैसे चुम्बनों से 
नही सिखातीं कि आनंद क्या है.

एक दिन, ऐसे ही न जाने कौन 
संयोग से तुम्हारा नाम लेता है:
मुझे लगता है जैसे एक गुलाब फेंका गया है
कमरे में, हर ओर रंग और खुशबू फैल जाते हैं.

अगले दिन, जबकि तुम यहाँ मेरे पास होते हो,
मेरी नज़र बार-बार घडी की ओर उठती है:
गुलाब? गुलाब? वह क्या हो सकता है?
क्या वह कोई फूल है या पत्थर?

क्यों हम, व्यर्थ ही में, एक शीघ्र व्यतीत हो जाने वाले दिन से 
इतना अधिक डर जाते हैं, दुखी हो जाते हैं?
आज तो हमेशा कल चला ही जाता है --
ऐसा ना कहना उसका स्वभाव है. 

अपने नक्षत्र तले, मुस्कुराहट और चुम्बन लिए, 
हम पसंद करते हैं बनाना एक सहमति,
हालाँकि पानी की दो बूंदों की तरह
एक-दूसरे से बहुत अलग हैं हम (इस पर सहमत हैं हम)


-- वीस्वावा शिम्बोर्स्का



 वीस्वावा शिम्बोर्स्का ( Wislawa Szymborska ) पोलैंड की कवयित्री, निबंधकार व अनुवादक हैं. उनकी युवावस्था लगभग संघर्ष में ही बीती -- द्वितीय विश्व-युद्ध और उसके पोलैंड पर दुष्प्रभाव, कम पैसे होने की वजह से पढाई छोड़ देना, छुट-पुट नौकरियां, पोलैंड में साम्यवाद का लम्बा दौर. इस सब के बावजूद उनकी साहित्यिक व कलात्मक गतिविधियाँ जारी रही. उन्होंने अख़बारों व पत्रिकाओं में मूलतः साहित्य  के विषय पर खूब लिखा. उन्होंने बहुत प्रचुरता में नहीं लिखा. उनकी केवल २५० कविताएँ प्रकाशित हुईं. लेकिन उनका काम इतना सराहनीय था की पूरे विश्व में पहचानी जाने लगी. 1996 में उन्हें नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी कविताओं व निबंधों का अनेक भाषाओँ में अनुवाद किया गया है. 
इस कविता का मूल पोलिश से अंग्रेजी में अनुवाद स्तानिस्वाव बरंजाक व  क्लेर कावानाह ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़