शनिवार, जुलाई 02, 2011

पुकार और जवाब

द इन्नर वाइस, ओग्यूस्त रोदें
The Inner Voice, Auguste Rodin

एक बात बताओ, आजकल हम अपनी आवाज़ क्यों नहीं उठाते,
और जो हो रहा है उस का विरोध क्यों नहीं करते.
क्या तुमने ध्यान दिया है कि इराक के लिए मंसूबे बांधे जा रहे हैं, 
और ध्रुवों की बर्फ पिघलती जा रही है.

मैं अपने आप से कहता हूँ : " चलो, आवाज़ उठाओ.
बड़े होने का क्या फायदा अगर तुम्हारे पास आवाज़ ही नहीं है?
पुकारो!  देखो कौन जवाब देता है !
ये पुकार और जवाब का खेल है!"

हमें अपने फरिश्तों तक पहुँचने के लिए 
बहुत जोर से आवाज़ लगानी होगी 
वे बहरे हैं, वे युद्ध के समय, 
चुप्पी के भरे मटकों में छुपे बैठे हैं.

क्या हमने इतने युद्धों के लिए हामी भर दी थी 
कि हम चुप्पी से छूट नहीं पा रहे? 
अगर आवाज़ नहीं उठाएंगे तो दूसरों को
( जो हम स्वयं ही हैं ) घर लूटने देंगे हम.

आखिर कैसे हमने इतने पुकारने वालों को सुना -- नेरुदा,
आख्मतोवा, थोरो , फ्रेडरिक डगलस -- और अब हम 
छोटी झाड़ियों में बैठी गौरैया की तरह चुप हैं?

कई विद्वानों ने कहा है कि हमारा जीवन सात ही दिनों का है.
अब हफ्ते का कौन-सा दिन है? क्या गुरूवार हो गया?
जल्दी करो. अभी आवाज़ उठाओ! 
रविवार की रात आने ही वाली है.


-- रोबर्ट ब्लाए



 रोबर्ट ब्लाए ( Robert Bly ) अमरीकी कवि, लेखक व अनुवादक हैं. 36 वर्ष की आयु में उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ, मगर उस से पहले साहित्य पढ़ते समय उन्हें फुलब्राईट स्कॉलरशिप मिला और वे नोर्वे जाकर वहां के कवियों की कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी में करने लगे. वहीं पर वे दूसरी भाषाओँ के अच्छे कवियों से दो-चार हुए - नेरुदा, अंतोनियो मचादो, रूमी, हाफिज़, कबीर, मीराबाई इत्यादि. अमरीका में लोग इन कवियों को नहीं जानते थे. उनके अनेक कविता संग्रह प्रकाशित हुए और उन्होंने खूब अनुवाद भी किया है. अमरीका के वे लोकप्रिय कवि हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा में उनके लिखे 80,000 पन्नों की आर्काइव है, जो उनका लगभग पचास वर्षों का काम है.

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़