मंगलवार, मई 03, 2011

उजाले

गोल्डफिश, ओंरी मातीस

साफ़ खुला आकाश, 
हवा चुप है, एकदम स्थिर, 
मैं आँगन के छोटे तालाब के पास बैठा हूँ. 
पानी में हौले-से हिलती सोन मछलियाँ,
उनकी झिलमिलाती चमक और मैं --
ऐसे साथ हैं हम 
जैसे मिट्टी और पानी.

ताज़े धुले गुच्छों में जीवन जैसे सघन हो जाता है. 
माँ मीठी बेज़िल की पत्तियां धो रही है. 
नान और पनीर, साफ़ खुला आकाश,
पेट्यूनिया की पंखुड़ियों का भीगा मखमल.
इस आँगन के फूल-पत्तों के बीच कहीं,
बहुत पास ही है मुक्ति.

पीतल के कटोरे को 
कैसे दुलार रही है रोशनी.
ऊंची दीवारों से लगी सीढ़ी से 
पग-पग नीचे उतरती है सुबह 
और बिछ जाती है ज़मीन पर.
हर चीज़ की रहस्यमय मुस्कान के पीछे 
समय के घेरे में एक छोटी-सी खिड़की है, 
जिस से मेरा चेहरा बाहर झांकता है.

कितना कुछ है जो मैं नहीं जानता मगर, 
अगर मैं वो टहनी तोड़ लूँगा, 
जानता हूँ , मर जाऊँगा.
मैं बहुत ऊपर उठ जाऊँगा 
और मेरे पंख निकल आयेंगे. 
मैं अँधेरे में एक राह देख रहा हूँ. 
मैं एक दीपक हूँ. 
रेत, रोशनी, पेड़ों भरे जंगल 
और मैं...एक हैं हम सब.
मैं रास्ता हूँ, पुल हूँ,
नदी हूँ, लहरें हूँ,
पानी पे तिरती एक पत्ते की छाया 
मेरे अनंत एकांत को भर देती है. 

--सोहराब सेपेहरी 


सोहराब सेपेहरी फारसी नयी कविता के प्रख्यात कवि व ईरान के सर्वश्रेष्ठ माडर्नस्ट पेंटर थे. उनकी कविताएँ मानवतावादी हैं व प्रकृति के प्रति उनके प्रेम को झलकाती हैं. उन्होंने ने फ़ारसी कविता को नया मुहावरा दिया क्योंकि वे बौद्ध धर्मं, रहस्यवाद व पश्चिमी परम्पराओं से प्रभावित थे. साथ ही मुक्त छंद में लिख कर उन्होंने एक नयी शैली को भी स्थापित किया. उनकी कविताओं का अनेक भाषाओँ में अनुवाद किया गया है.

इस कविता का मूल फारसी से अंग्रेजी में अनुवाद जेरोम डब्ल्यू क्लिंटन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़