गुरुवार, मई 19, 2011

जब मैंने कहा था कि मैं तुम्हें चाहता हूँ -- कुछ प्रेम कविताएँ

पीच ट्रीज़ इन ब्लोस्सम, विन्सेंट वान गोग
Peach Trees In Blossom, Vincent Van Gogh

तुम्हारे लिए मैं अलग-ही शब्द लिखना चाहता हूँ 
एक नई भाषा गढ़ना चाहता हूँ सिर्फ तुम्हारे लिए
जो तुम्हारे बदन को समा ले
और मेरे प्यार को.

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बहुत दूर चला जाना चाहता हूँ मैं शब्दकोष से 
और अपने होंठ पीछे छोड़ जाना चाहता हूँ. 
इस मुंह से तंग आ गया हूँ मैं, 
अब कोई दूसरा मुंह चाहता हूँ. 
ऐसा जो कभी चेरी का पेड़ बन जाए, 
कभी माचिस की डिबिया. 
जिस में से शब्द ऐसे निकलें 
जैसे पानी में से जलपरियाँ,
जैसे जादूगर की पिटारी में से सफ़ेद कबूतर. 

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तुम्हारे लिए 
एक अनूठा किताबघर बनाना चाहता हूँ. 
जिस में मैं रखूँगा 
बारिश की रिम-झिम,
चाँद की मिट्टी,
घने काले बादलों की उदासी,
पतझड़ के पहियों के नीचे
दबे पत्तों का दर्द.

-- निज़ार क़ब्बानी 

  निज़ार क़ब्बानी ( Nizar Kabaani )सिरिया से हैं व अरबी भाषा के कवियों में उनका विशिष्ट स्थान है. उनकी सीधी सहज कविताएँ अधिकतर प्यार के बारे में हैं. अरबी दुनिया में नारी का स्थान क्या है और क्या होना चाहिए, इस विषय पर भी लिखा है उन्होंने. साथ ही अरबी राष्ट्रवाद भी उनकी कविताओं में खूब झलकता है. जब उनसे पूछा गया कि क्या वे क्रांतिकारी हैं, उन्होंने ने कहा था -- अरबी दुनिया में प्यार नज़रबंद है, मैं उसे आज़ाद करना चाहता हूँ. उन्होंने 16 कि उम्र से कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थी, व उनके 34 कविता संग्रह छप चुके हैं. उनकी कविताओं को कई प्रसिद्द अरबी गायकों ने गया है, जिन में मिस्र की बेहतरीन गायिका उम्म कुल्थुम भी हैं, जिनके गीत सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे.
इन कविताओं का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद लेना जायुसी ने किया है.
इन कविताओं का हिंदी में अनुवाद  -- रीनू तलवाड़