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पीच ट्रीज़ इन ब्लोस्सम, विन्सेंट वान गोग Peach Trees In Blossom, Vincent Van Gogh |
तुम्हारे लिए मैं अलग-ही शब्द लिखना चाहता हूँ
एक नई भाषा गढ़ना चाहता हूँ सिर्फ तुम्हारे लिए
जो तुम्हारे बदन को समा ले
और मेरे प्यार को.
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बहुत दूर चला जाना चाहता हूँ मैं शब्दकोष से
और अपने होंठ पीछे छोड़ जाना चाहता हूँ.
इस मुंह से तंग आ गया हूँ मैं,
अब कोई दूसरा मुंह चाहता हूँ.
ऐसा जो कभी चेरी का पेड़ बन जाए,
कभी माचिस की डिबिया.
जिस में से शब्द ऐसे निकलें
जैसे पानी में से जलपरियाँ,
जैसे जादूगर की पिटारी में से सफ़ेद कबूतर.
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तुम्हारे लिए
एक अनूठा किताबघर बनाना चाहता हूँ.
जिस में मैं रखूँगा
बारिश की रिम-झिम,
चाँद की मिट्टी,
घने काले बादलों की उदासी,
पतझड़ के पहियों के नीचे
दबे पत्तों का दर्द.
-- निज़ार क़ब्बानी
इन कविताओं का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद लेना जायुसी ने किया है.
इन कविताओं का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़