मंगलवार, मई 22, 2012

प्यार

द वेव, अलबर्ट बियरशटाड
The Wave, Albert Bierstadt
 
प्यार गुण है, दुनिया है प्यार का रूपकालंकार.
जलते हुए से, पतझड़ के पत्ते बहुत चाहते हैं हवा को,
उसकी उत्तेजित साँसों को,
और द्रुत लय में घूमते पहुँच जाते हैं अपनी मृत्यु के पास.
यहाँ ही नहीं, तुम हर कहीं हो.
                                      सांझ का आकाश
पूजता है धरती को, झुक-झुक जाता है, जवाब में
गहराते पर्वतों में धरती भी तरसती है. रात
है एक समानुभूति, आँखों में आंसुओं की जगह तारे लिए.
यहाँ नहीं,

तुम वहां हो जहाँ मैं खड़ी हूँ, किनारे के लिए पगलाते
सागर को सुनती, चाँद को धरती के लिए
तरसते, व्यथित होते देखती. जब सुबह होती है, सूरज,
उद्दीप्त, पेड़ों को सोने में ढंकता है, मौसमों में से,

                              

                                 उजले प्रेम के
कारणों में से, चल कर आते हो तुम मेरे पास.




-- कैरल एन डफ्फी

 


कैरल एन डफ्फी ( Carol Ann Duffy )स्कॉट्लैंड की कवयित्री व नाटककार हैं. वे मैनचेस्टर मेट्रोपोलिटन युनिवेर्सिटी में समकालीन कविता की प्रोफ़ेसर हैं. 2009 में वे ब्रिटेन की पोएट लॉरीअट नियुक्त की गईं. वे पहली महिला व पहली स्कॉटिश पोएट लॉरीअट हैं. उनके स्वयं के कई कविता संकलन छ्प चुके हैं. उन्होंने कई कविता संकलनों को सम्पादित भी किया है. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक सम्मान व अवार्ड मिल चुके हैं. सरल भाषा में लिखी उनकी कविताएँ अत्यंत लोकप्रिय हैं व स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा भी हैं. यह कविता उनके 2005 में छपे संकलन ' रैप्चर ' से है, जिसे टी एस एलीअट प्राइज़ मिला था.
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़  
 

मैं अब भी क्यों लिखता हूँ कविताएँ

चार्लज़ सिमिक 


मैं अब भी क्यों लिखता हूँ कविताएँ 
(द न्यूयार्क रिव्यू ऑफ़ बुक्स ब्लॉग में 15 मई, 2012 को प्रकाशित लेख )

जब मेरी माँ बहुत वृद्ध थीं और अपने जीवन के अंतिम समय में नर्सिंग होम में भरती थीं, एक दिन यह पूछ कर उन्होंने मुझे चौंका दिया कि क्या मैं अब भी कविता लिखता हूँ. जब मैंने बेसमझे बूझे कहा कि हाँ अब भी लिखता हूँ, तो उन्होंने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे कुछ भी समझ न पाई हों ओर एकटक देखती रहीं. जो कह रहा था वह मुझे दोहराना पड़ा जब तक कि उन्होंने गहरी सांस लेकर अपना सर नहीं हिलाया, जैसे मन-ही-मन सोच रही हों कि मेरा यह बेटा हमेशा से ही थोडा पगला था. आज जब मैं अपने जीवन के सातवें दशक में चल रहा हूँ, वे लोग जो मुझे अच्छे से नहीं जानते समय-समय पर यह सवाल पूछ लेते हैं. मुझे शक है कि उनमे से कई लोग उम्मीद करते हैं कि मैं कहूँगा कि मुझे अक्ल आ गयी है और मैंने अपनी युवावस्था के इस पागलपन का परित्याग कर दिया है. अभी ऐसा नहीं हुआ है मुझे यह स्वीकार करते देख वे प्रत्यक्षतः विस्मित होते हैं. लगता है जैसे वे सोच रहे हैं कि इसमें कुछ एकदम अस्वाभाविक और शर्मनाक है, जैसे कि मैं इस उम्र में एक हाई-स्कूल की लड़की के साथ घूमता हूँ और रात में उसके साथ स्केटिंग करने जाता हूँ.

एक और सवाल, जो युवा और वृद्ध कवियों से साक्षात्कारों में अक्सर पूछा जाता है कि उन्होंने कवि बनने की कब और क्यों सोची. पूर्वधारणा यह है कि ऐसा कोई एक पल आया होगा जब उन्हें समझ आया कि कविता लिखने के सिवा उनकी कोई नियति नहीं है, जिसके बाद उन्होंने अपने परिवारों को अपना फैसला सुनाया और उनकी माताएँ चिल्लाईं: " हे भगवान, हम से क्या भूल हुई थी जो ऐसा हुआ?" और उनके पिता ने पतलून से बेल्ट खींच के निकाली और उन्हें कमरे में गोल-गोल दौड़ाया. मेरा खूब मन करता था कि मैं गंभीर चेहरा बना कर साक्षात्कारकर्ता से कहूँ कि मैंने कविता लिखना इसलिए चुना ताकि मैं इधर-उधर बिखरी पुरुस्कार राशि पर हाथ साफ़ कर सकूँ, चूंकि उन्हें यह बताना कि मेरे साथ ऐसी कोई बात हुई ही नहीं, निसंदेह उन्हें निराश करना होता. वे कोई वीरतापूर्ण और काव्यात्मक बात सुनना चाहते हैं. मैं उन्हें बताता हूँ कि मैं दूसरे हाई-स्कूल के लड़कों जैसा ही था जो कविताएँ लड़कियों को प्रभावित करने के लिए लिखता था, मगर उस से परे और कोई अभिलाषा नहीं थी. चूंकि मैं मूल-अंग्रेजी भाषी नहीं था, वे लोग मुझ से यह भी पूछते कि मैंने अपनी कविताएँ सर्बियाई भाषा में क्यों नहीं लिखी और मन-ही-मन अटकलें लगाते कि मैंने अपनी मातृभाषा को तजने का निर्णय कैसे लिया. एक बार फिर मेरा उत्तर उन्हें उथला लगता जब मैं समझाने का प्रयास करता कि कविता को फुसलाने के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की पहली शर्त यही है कि वह समझ आए. किसी अमरीकी लड़की का ऐसे लड़के के प्यार में पड़ना असंभव ही था जो उसके संग बैठ कर कोक पीते हुए उसे सर्बियाई में लिखी प्रेम कविताएँ सुनाता.

मेरे लिए यह रहस्य की ही बात है कि मैंने कविताएँ लिखना तब भी जारी क्यों रखा जब उसकी कोई ज़रुरत नहीं रह गयी थी. मेरी शुरूआती कविताएँ शर्मनाक रूप से बेकार थी, और जो उसके एकदम बाद आयीं, वे भी कोई बेहतर नहीं थी. अपने जीवन में मैंने कई युवा कवियों को जाना है जिनमें अपरिमित प्रतिभा है मगर जिन्होंने, यह बताये जाने के बाद भी कि वे प्रतिभाशाली हैं, कविता लिखना त्याग दिया. यह गलती मेरे साथ किसी ने नहीं की, फिर भी मैं आगे बढ़ता रहा. मुझे अपनी आरंभिक कविताएँ नष्ट करने का खेद होता है, क्योंकि अब याद ही नहीं रहा कि वे किस से प्रभावित थी. जिन दिनों मैं उन्हें लिख रहा था, मैं अधिकतर कथा-साहित्य पढ़ रहा था और मुझे समकालीन कविता और आधुनिकतावादी कवियों के बारे में कम ज्ञान था. कविता से मेरा एकमात्र विस्तृत परिचय उस वर्ष हुआ था जब अमरीका आने से पहले मैं पेरिस के एक स्कूल में पढ़ा करता था. वे न केवल हमें लामार्तीन, ह्यूगो, बोदलेयर, रिम्बो और वर्लें पढ़ाते थे बल्कि उनकी कई कविताएँ याद करवाते थे जो हमें पूरी कक्षा के सामने सुनानी होती थी. मुझ जैसे अधपकी फ्रेंच बोलने वाले के लिए यह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं था -- और मेरे सहपाठियों के लिए निश्चित मनोरंजन, जो फ्रेंच साहित्य की कुछ सबसे सुन्दर और स्थापित रूप से प्रसिद्द पंक्तियों का मेरे द्वारा किया हुआ गलत उच्चारण देख, हंस-हंस के दोहरे हो जाते थे -- इतना कि उसके वर्षों बाद भी मैं यह जांचने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था कि आखिर मैंने उस कक्षा में क्या सीखा. आज मुझे स्पष्ट ज्ञात है कि मेरा कविता के प्रति प्रेम उन्हीं पाठों व अनुवाचनों से आया है, जिन्होंने मुझ पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ा जिसका अनुमान मैं युवावस्था में नहीं लगा पाया.


मुझे हाल ही में एहसास हुआ कि मेरे अतीत में ऐसा कुछ और भी है जिसने कविताएँ लिखते रहने की मेरी दृढ़ता में योगदान दिया है. वह है मेरा शतरंज के प्रति प्रेम. जब मैं छह वर्ष का था, युद्ध-ग्रस्त बेलग्रेड में मुझे एक खगोलशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर ने यह खेल खेलना सिखाया था. अगले कुछ वर्षों में मैं इतना अच्छा खेलने लगा था कि न केवल अपने हमउम्र बच्चों को हरा लेता बल्कि पड़ोस के कई बड़ों को भी. मुझे याद है कि मेरी पहली उनींदी रातें, हारी हुई और दिमाग में दुबारा खेली गयी बाज़ियों के वजह से थी. शतरंज ने मुझ धुन का पक्का और दृढ बना दिया. पहले ही, मैं एक गलत चाल या अपमानजनक हार भूल नहीं पाता था. मुझे ऐसी बाज़ियाँ बहुत पसंद थी जिसमें दोनों तरफ थोड़े ही प्यादे रह जाते हैं और हर एक चाल अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. आज भी, जब मेरा प्रतिद्वंदी एक कंप्यूटर प्रोग्राम है ( जिसे में गॉड बुलाता हूँ), जो मुझे 10 में से 9 बार मात देता है. मैं न केवल उसकी श्रेष्ठ बुद्धि से विस्मित हूँ, बल्कि अपनी हार को अपनी कभी-कभी की जीत से अधिक दिलचस्प पाता हूँ. जिस तरह की कविताएँ मैं लिखता हूँ -- अधिकतर छोटी जिन्हें संवारने की आवश्यकता अंतहीन होती है -- अक्सर मुझे शतरंज की बाज़ियों कि याद दिला देती हैं. अपनी सफलता के लिए वे निर्भर हैं शब्द और बिम्ब के सही क्रम में रखे जाने पर. उनका अंत होन चाहिए एक शह-मात की तरह, सुरूचिपूर्ण ढंग से संचालित, अवश्यम्भावी लेकिन अचंभित करने वाला.

निस्संदेह, अब यह सब कहना बहुत आसान है. जब मैं अट्ठारह बरस का था, मेरी चिंताएँ और थीं. मेरे माँ-बाप अलग हो गए थे और मैं अकेला था, शिकागो के एक दफ्तर में काम करता और रात को यूनिवर्सिटी की क्लास में उपस्थित रहता. फिर 1958 में जब मैं न्यूयार्क चला आया, वैसा ही जीवन जीता रहा. मैं कविताएँ लिखता. उनमें से कुछ साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित तो हो जाती, मगर मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि इन गतिविधियों से कुछ हासिल होगा. जिन लोगों के साथ मैं काम करता था, जिनसे दोस्ती करता था, किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी कि मैं कवि हूँ. मैं थोड़ी चित्रकारी भी करता था, और किसी अनजान व्यक्ति को अपनी यह रूचि बताना मुझे अधिक आसान लगता था. मैं अपनी कविताओं के बारे में निश्चित रूप से बस एक ही बात जानता था कि वे उतनी अच्छी नहीं थीं जितनी मैं चाहता था कि वे हों. अपनी मानसिक शान्ति के लिए मैंने दृढ निश्चय किया था कि मैं कुछ ऐसा लिखूं जिसे अपने साहित्यिक मित्रों को दिखाने में मुझे शर्मिंदगी न महसूस हो. इस बीच अन्य आवश्यक बातों पर ध्यान देना ज़रूरी था, जैसे कि शादी करना, किराया देना,  बार और जैज़ क्लबों में अड्डा जमाना और हर रात, सोने से पहले, अपने ईस्ट तेरहवीं स्ट्रीट के अपार्टमेन्ट की चूहेदानियों में पीनट बटर का चारा डालना.

-- चार्लज़ सिमिक 

इस लेख का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़