बुधवार, मई 30, 2012

बत्तियाँ गुल

बर्निंग द डार्क, निकोलाई ररीह
Burning the Dark, Nicholas Roerich

बूढ़ा दुखित पतझड़ बुलाता जा रहा है
अपनी गर्मियों को
घाटी बुलाती जा रही है पर्वत के पार
अन्य घाटियों को
हर सितारा अपने अँधेरे में अकेला गरजता है
पूरी रात में नहीं है किसी आवाज़ की आहट भी 




-- डब्ल्यू एस मर्विन



W.S. Merwin डब्ल्यू एस मर्विन ( W S Merwin )अमरीकी कवि हैं व इन दिनों अमरीका के पोएट लॉरीअट भी हैं.उनकी कविताओं, अनुवादों व लेखों के 30 से अधिक संकलन प्रकाशित हो चुके हैं .उन्होंने दूसरी भाषाओँ के प्रमुख कवियों के संकलन, अंग्रेजी में खूब अनूदित किये हैं, व अपनी कविताओं का भी स्वयं ही दूसरी भाषाओँ में अनुवाद किया है.अपनी कविताओं के लिए उन्हें अन्य सम्मानों सहित पुलित्ज़र प्राइज़ भी मिल चुका है.वे अधिकतर बिना विराम आदि चिन्हों के मुक्त छंद में कविता लिखते हैं.यह कविता उनके संकलन 'द शैडो ऑफ़ सिरिअस ' से है.

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

सोमवार, मई 28, 2012

बस और नहीं रूढोक्तियाँ

हेड ऑफ़ ए वुमन, डेविड बर्ल्यूक
Head of a Woman, David Burliuk
दिव्य चेहरा
जो गुलबहार जैसे खोल देता है अपनी पंखुड़ियाँ सूरज की ओर
वैसे ही तुम खोल देती हो
अपना चेहरा मेरी ओर जब मैं पन्ना पलटता हूँ.

मोहक मुस्कान
कोई भी आदमी हो सकता है तुम्हारे जादू में गिरफ्त,
ओ पत्रिका की सुंदरी.

कितनी कविताएँ लिखी गयी हैं तुम्हारे लिए?
कितने दांते तुम्हें पत्र लिख चुके हैं, बेआत्रीस?
तुम्हारी सम्मोहनी माया को
तुम्हारी निर्मित फंतासी को.

मगर आज एक और रूढोक्ति के तहत
यह कविता मैं तुम्हारे लिए नहीं लिखूंगा.
नहीं. और रूढोक्तियाँ नहीं.

यह कविता समर्पित है उन स्त्रीयों को
जिनका सौंदर्य है उनकी सौम्यता में,
उनकी बुद्धि में,
उनके चरित्र में
न कि उनके बनाये हुए रूप में.

यह कविता तुम्हारे लिए है

तुम जो शहरज़ाद की तरह
रोज़ उठती हो एक नई कहानी के साथ,
कहानी जो गाती है बदलाव का गीत
जो करती है संघर्ष की उम्मीद
संघर्ष दो देहों के एक होने के प्रेम के लिए
संघर्ष नए दिन के संग जागे नए आवेशों के लिए
संघर्ष उपेक्षित अधिकारों के लिए
या संघर्ष केवल एक और रात जीवित रहने के लिए.

हाँ, यह तुम्हारे लिए है,
तुम जो जीती हो दुःख की दुनिया में
तुम जो हो हर पल नष्ट होते ब्रह्माण्ड का चमकता सितारा,
तुम जो हो एक-हज़ार-एक लड़ाइयों की योद्धा,
तुम्हारे लिए, मेरे मन की मीत.

अब से, मेरा सिर झुक कर नहीं देखेगा कोई पत्रिका,
बल्कि उठ कर निहारेगा रात को,
और उसके चमकते सितारों को,
तो अब और रूढोक्तियाँ नहीं.




-- ओक्तावियो पास 




ओक्तावियो पास ( Octavio Paz )मेक्सिको के लेखक व कवि थे. वे कुछ साल भारत में मेक्सिको के राजदूत भी रहे. उनके लेखन पर मार्क्सवाद, स्यूरेयालीज्म, एग्ज़िस्टेन्शलिज़म के साथ हिन्दू व बौध धर्मों का भी बहुत प्रभाव रहा. उनकी कविताओं व निबंधों के असंख्य संकलन प्रकाशित हुए हैं व अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है. सैम्युएल बेकेट, एलीजाबेथ बिशप, मार्क स्ट्रैंड जैसे जाने-माने कवियों-लेखकों ने उनके लेखन का अंग्रेजी में अनुवाद किया है. सर्वंतेस प्राइज़ व 1990 के नोबेल पुरस्कार सहित उन्हें अनेक सम्मान मिले थे.
इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद एलियट वाइनबर्गर ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

शनिवार, मई 26, 2012

भेद

आरिस्तीद ब्रुओं ऑन हिज़ बाइसिकल,
ओंरी तूलूज़-लौत्रेक
Arisitide Bruant on His Bicycle,
Henri Toulouse-Lautrec

जब तुम सोफे पर सो रही थीं
तुम्हारे कान से अपना कान लगा कर
सुनता रहा मैं तुम्हारे सपनों की प्रतिध्वनियाँ.

यही है वह महासागर जिसमें डुबकी लगाना चाहता हूँ मैं,
विलीन हो जाना चाहता हूँ सुन्दर मछलियों में,
प्लवक में, समुद्री डाकुओं के जहाज़ों में.

मैं पास जाता हूँ सड़क पर चलते उन लोगों के
जो कुछ-कुछ तुम्हारे जैसे दिखते हैं,
पूछता हूँ उनसे वह सवाल जो मैं तुमसे पूछता.

क्या हम बैठ सकते हैं छत पर और देख सकते हैं तारों को
धुआँरे से निकले धुएँ में घुलते हुए?
तुम्हारी साँसों के जंगल में 

क्या मैं टार्ज़न की तरह झूल सकता हूँ?

मैं नहीं चाहता तुम्हारी बाहों में होना.
मैं बस चाहता हूँ कि वह साईकल चला रहा होता
जो जाती तुम्हारी बाहों की ओर.





--  जेफ्फ्री मकडेनिअल 



जेफ्फ्री मकडेनिअल ( Jeffrey McDaniel ) एक अमरीकी कवि हैं. स्कूल के समय से ही वे साहित्यिक गतिविधियों से जुड़ने लगे थे. कॉलेज में वे कॉलेज की राष्ट्रिय साहित्य पत्रिका के सम्पादक थे. वे पोएट्री थियेटर व पोएट्री स्लेम जैसी गतिविधियों में भाग लेने लगे. पढाई पूरी करने के बाद उनका सारा समय लेखन, कविता और क्रिएटिव राइटिंग पढ़ाने में व उसे लोकप्रिय बनाने में बीतता है. वे पोएट्री इन कम्युनिटी प्रोजेक्ट्स से जुड़े हुए हैं और खासकर स्कूली छात्रों को कविता से जोड़ने के प्रयास में रत हैं. यह कविता उनके संकलन 'द फॉरगिवनेस परेड 'से है.
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

गुरुवार, मई 24, 2012

मुक्ति

स्टिल लाइफ विद बुक्स एंड कैंडल, ओंरी मातीस
Still Life With Books and Candle,
  Henri Matisse
ओह, कितना आनंद है
ना करने में किसी कर्त्तव्य का पालन!
पास में किताब का होना
और उसको ना पढ़ना!
किताब पढ़ना उबाऊ है.
पढ़ाई करना कुछ नहीं करना है.
सूरज बिना साहित्य पढ़े चमकता है.
नदियाँ बहती हैं, गलत या सही,
बिना किसी मूल संस्करण के.
और हौले-से बहती हवा, हर सुबह 

कितनी नैसर्गिक,
उसके पास है पर्याप्त समय और
नहीं है आगे दौड़ जाने का कोई कारण.

किताबें है केवल स्याही-रंगे कागज़.
पढ़ाई वह है जो शून्य और कुछ नहीं के बीच अंतर नहीं कर पाती.
सब से अच्छी है धुंध.
और कोई फर्क नहीं पड़ता कि दोम सेबास्चिऊ कभी लौटेंगे या नहीं.

बहुत अच्छे हैं कविता, दयालुता और नृत्य
मगर इस दुनिया में सब से अच्छे हैं बच्चे,
फूल, संगीत, चांदनी, और सूरज जिसकी एकमात्र गलती यह है कि
वह कभी-कभी जीवन को खिलाने के बजाय झुलसाने लगता है.

और इन सब से और किसी भी और चीज़ से बेहतर हैं इसा मसीह,
जो कुछ नहीं जानते थे वित्त के बारे में,
न ही उनके निजी पुस्तकालय के होने का पता है.




-- फेर्नान्दो पेस्सोआ ( अल्बेर्तो काइरो )



फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने अल्बेर्तो काइरो ( Alberto Caeiro )के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नाम या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो ये है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग जीवनी, स्वभाव, दर्शन, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्ररी में उन पन्नों की एडिटिंग का काम आज तक जारी है. यह कविता उनके संकलन 'द कीपर ऑफ़ शीप ' से है.
इस कविता का मूल पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

मंगलवार, मई 22, 2012

प्यार

द वेव, अलबर्ट बियरशटाड
The Wave, Albert Bierstadt
 
प्यार गुण है, दुनिया है प्यार का रूपकालंकार.
जलते हुए से, पतझड़ के पत्ते बहुत चाहते हैं हवा को,
उसकी उत्तेजित साँसों को,
और द्रुत लय में घूमते पहुँच जाते हैं अपनी मृत्यु के पास.
यहाँ ही नहीं, तुम हर कहीं हो.
                                      सांझ का आकाश
पूजता है धरती को, झुक-झुक जाता है, जवाब में
गहराते पर्वतों में धरती भी तरसती है. रात
है एक समानुभूति, आँखों में आंसुओं की जगह तारे लिए.
यहाँ नहीं,

तुम वहां हो जहाँ मैं खड़ी हूँ, किनारे के लिए पगलाते
सागर को सुनती, चाँद को धरती के लिए
तरसते, व्यथित होते देखती. जब सुबह होती है, सूरज,
उद्दीप्त, पेड़ों को सोने में ढंकता है, मौसमों में से,

                              

                                 उजले प्रेम के
कारणों में से, चल कर आते हो तुम मेरे पास.




-- कैरल एन डफ्फी

 


कैरल एन डफ्फी ( Carol Ann Duffy )स्कॉट्लैंड की कवयित्री व नाटककार हैं. वे मैनचेस्टर मेट्रोपोलिटन युनिवेर्सिटी में समकालीन कविता की प्रोफ़ेसर हैं. 2009 में वे ब्रिटेन की पोएट लॉरीअट नियुक्त की गईं. वे पहली महिला व पहली स्कॉटिश पोएट लॉरीअट हैं. उनके स्वयं के कई कविता संकलन छ्प चुके हैं. उन्होंने कई कविता संकलनों को सम्पादित भी किया है. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक सम्मान व अवार्ड मिल चुके हैं. सरल भाषा में लिखी उनकी कविताएँ अत्यंत लोकप्रिय हैं व स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा भी हैं. यह कविता उनके 2005 में छपे संकलन ' रैप्चर ' से है, जिसे टी एस एलीअट प्राइज़ मिला था.
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़  
 

मैं अब भी क्यों लिखता हूँ कविताएँ

चार्लज़ सिमिक 


मैं अब भी क्यों लिखता हूँ कविताएँ 
(द न्यूयार्क रिव्यू ऑफ़ बुक्स ब्लॉग में 15 मई, 2012 को प्रकाशित लेख )

जब मेरी माँ बहुत वृद्ध थीं और अपने जीवन के अंतिम समय में नर्सिंग होम में भरती थीं, एक दिन यह पूछ कर उन्होंने मुझे चौंका दिया कि क्या मैं अब भी कविता लिखता हूँ. जब मैंने बेसमझे बूझे कहा कि हाँ अब भी लिखता हूँ, तो उन्होंने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे कुछ भी समझ न पाई हों ओर एकटक देखती रहीं. जो कह रहा था वह मुझे दोहराना पड़ा जब तक कि उन्होंने गहरी सांस लेकर अपना सर नहीं हिलाया, जैसे मन-ही-मन सोच रही हों कि मेरा यह बेटा हमेशा से ही थोडा पगला था. आज जब मैं अपने जीवन के सातवें दशक में चल रहा हूँ, वे लोग जो मुझे अच्छे से नहीं जानते समय-समय पर यह सवाल पूछ लेते हैं. मुझे शक है कि उनमे से कई लोग उम्मीद करते हैं कि मैं कहूँगा कि मुझे अक्ल आ गयी है और मैंने अपनी युवावस्था के इस पागलपन का परित्याग कर दिया है. अभी ऐसा नहीं हुआ है मुझे यह स्वीकार करते देख वे प्रत्यक्षतः विस्मित होते हैं. लगता है जैसे वे सोच रहे हैं कि इसमें कुछ एकदम अस्वाभाविक और शर्मनाक है, जैसे कि मैं इस उम्र में एक हाई-स्कूल की लड़की के साथ घूमता हूँ और रात में उसके साथ स्केटिंग करने जाता हूँ.

एक और सवाल, जो युवा और वृद्ध कवियों से साक्षात्कारों में अक्सर पूछा जाता है कि उन्होंने कवि बनने की कब और क्यों सोची. पूर्वधारणा यह है कि ऐसा कोई एक पल आया होगा जब उन्हें समझ आया कि कविता लिखने के सिवा उनकी कोई नियति नहीं है, जिसके बाद उन्होंने अपने परिवारों को अपना फैसला सुनाया और उनकी माताएँ चिल्लाईं: " हे भगवान, हम से क्या भूल हुई थी जो ऐसा हुआ?" और उनके पिता ने पतलून से बेल्ट खींच के निकाली और उन्हें कमरे में गोल-गोल दौड़ाया. मेरा खूब मन करता था कि मैं गंभीर चेहरा बना कर साक्षात्कारकर्ता से कहूँ कि मैंने कविता लिखना इसलिए चुना ताकि मैं इधर-उधर बिखरी पुरुस्कार राशि पर हाथ साफ़ कर सकूँ, चूंकि उन्हें यह बताना कि मेरे साथ ऐसी कोई बात हुई ही नहीं, निसंदेह उन्हें निराश करना होता. वे कोई वीरतापूर्ण और काव्यात्मक बात सुनना चाहते हैं. मैं उन्हें बताता हूँ कि मैं दूसरे हाई-स्कूल के लड़कों जैसा ही था जो कविताएँ लड़कियों को प्रभावित करने के लिए लिखता था, मगर उस से परे और कोई अभिलाषा नहीं थी. चूंकि मैं मूल-अंग्रेजी भाषी नहीं था, वे लोग मुझ से यह भी पूछते कि मैंने अपनी कविताएँ सर्बियाई भाषा में क्यों नहीं लिखी और मन-ही-मन अटकलें लगाते कि मैंने अपनी मातृभाषा को तजने का निर्णय कैसे लिया. एक बार फिर मेरा उत्तर उन्हें उथला लगता जब मैं समझाने का प्रयास करता कि कविता को फुसलाने के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की पहली शर्त यही है कि वह समझ आए. किसी अमरीकी लड़की का ऐसे लड़के के प्यार में पड़ना असंभव ही था जो उसके संग बैठ कर कोक पीते हुए उसे सर्बियाई में लिखी प्रेम कविताएँ सुनाता.

मेरे लिए यह रहस्य की ही बात है कि मैंने कविताएँ लिखना तब भी जारी क्यों रखा जब उसकी कोई ज़रुरत नहीं रह गयी थी. मेरी शुरूआती कविताएँ शर्मनाक रूप से बेकार थी, और जो उसके एकदम बाद आयीं, वे भी कोई बेहतर नहीं थी. अपने जीवन में मैंने कई युवा कवियों को जाना है जिनमें अपरिमित प्रतिभा है मगर जिन्होंने, यह बताये जाने के बाद भी कि वे प्रतिभाशाली हैं, कविता लिखना त्याग दिया. यह गलती मेरे साथ किसी ने नहीं की, फिर भी मैं आगे बढ़ता रहा. मुझे अपनी आरंभिक कविताएँ नष्ट करने का खेद होता है, क्योंकि अब याद ही नहीं रहा कि वे किस से प्रभावित थी. जिन दिनों मैं उन्हें लिख रहा था, मैं अधिकतर कथा-साहित्य पढ़ रहा था और मुझे समकालीन कविता और आधुनिकतावादी कवियों के बारे में कम ज्ञान था. कविता से मेरा एकमात्र विस्तृत परिचय उस वर्ष हुआ था जब अमरीका आने से पहले मैं पेरिस के एक स्कूल में पढ़ा करता था. वे न केवल हमें लामार्तीन, ह्यूगो, बोदलेयर, रिम्बो और वर्लें पढ़ाते थे बल्कि उनकी कई कविताएँ याद करवाते थे जो हमें पूरी कक्षा के सामने सुनानी होती थी. मुझ जैसे अधपकी फ्रेंच बोलने वाले के लिए यह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं था -- और मेरे सहपाठियों के लिए निश्चित मनोरंजन, जो फ्रेंच साहित्य की कुछ सबसे सुन्दर और स्थापित रूप से प्रसिद्द पंक्तियों का मेरे द्वारा किया हुआ गलत उच्चारण देख, हंस-हंस के दोहरे हो जाते थे -- इतना कि उसके वर्षों बाद भी मैं यह जांचने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था कि आखिर मैंने उस कक्षा में क्या सीखा. आज मुझे स्पष्ट ज्ञात है कि मेरा कविता के प्रति प्रेम उन्हीं पाठों व अनुवाचनों से आया है, जिन्होंने मुझ पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ा जिसका अनुमान मैं युवावस्था में नहीं लगा पाया.


मुझे हाल ही में एहसास हुआ कि मेरे अतीत में ऐसा कुछ और भी है जिसने कविताएँ लिखते रहने की मेरी दृढ़ता में योगदान दिया है. वह है मेरा शतरंज के प्रति प्रेम. जब मैं छह वर्ष का था, युद्ध-ग्रस्त बेलग्रेड में मुझे एक खगोलशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर ने यह खेल खेलना सिखाया था. अगले कुछ वर्षों में मैं इतना अच्छा खेलने लगा था कि न केवल अपने हमउम्र बच्चों को हरा लेता बल्कि पड़ोस के कई बड़ों को भी. मुझे याद है कि मेरी पहली उनींदी रातें, हारी हुई और दिमाग में दुबारा खेली गयी बाज़ियों के वजह से थी. शतरंज ने मुझ धुन का पक्का और दृढ बना दिया. पहले ही, मैं एक गलत चाल या अपमानजनक हार भूल नहीं पाता था. मुझे ऐसी बाज़ियाँ बहुत पसंद थी जिसमें दोनों तरफ थोड़े ही प्यादे रह जाते हैं और हर एक चाल अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. आज भी, जब मेरा प्रतिद्वंदी एक कंप्यूटर प्रोग्राम है ( जिसे में गॉड बुलाता हूँ), जो मुझे 10 में से 9 बार मात देता है. मैं न केवल उसकी श्रेष्ठ बुद्धि से विस्मित हूँ, बल्कि अपनी हार को अपनी कभी-कभी की जीत से अधिक दिलचस्प पाता हूँ. जिस तरह की कविताएँ मैं लिखता हूँ -- अधिकतर छोटी जिन्हें संवारने की आवश्यकता अंतहीन होती है -- अक्सर मुझे शतरंज की बाज़ियों कि याद दिला देती हैं. अपनी सफलता के लिए वे निर्भर हैं शब्द और बिम्ब के सही क्रम में रखे जाने पर. उनका अंत होन चाहिए एक शह-मात की तरह, सुरूचिपूर्ण ढंग से संचालित, अवश्यम्भावी लेकिन अचंभित करने वाला.

निस्संदेह, अब यह सब कहना बहुत आसान है. जब मैं अट्ठारह बरस का था, मेरी चिंताएँ और थीं. मेरे माँ-बाप अलग हो गए थे और मैं अकेला था, शिकागो के एक दफ्तर में काम करता और रात को यूनिवर्सिटी की क्लास में उपस्थित रहता. फिर 1958 में जब मैं न्यूयार्क चला आया, वैसा ही जीवन जीता रहा. मैं कविताएँ लिखता. उनमें से कुछ साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित तो हो जाती, मगर मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि इन गतिविधियों से कुछ हासिल होगा. जिन लोगों के साथ मैं काम करता था, जिनसे दोस्ती करता था, किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी कि मैं कवि हूँ. मैं थोड़ी चित्रकारी भी करता था, और किसी अनजान व्यक्ति को अपनी यह रूचि बताना मुझे अधिक आसान लगता था. मैं अपनी कविताओं के बारे में निश्चित रूप से बस एक ही बात जानता था कि वे उतनी अच्छी नहीं थीं जितनी मैं चाहता था कि वे हों. अपनी मानसिक शान्ति के लिए मैंने दृढ निश्चय किया था कि मैं कुछ ऐसा लिखूं जिसे अपने साहित्यिक मित्रों को दिखाने में मुझे शर्मिंदगी न महसूस हो. इस बीच अन्य आवश्यक बातों पर ध्यान देना ज़रूरी था, जैसे कि शादी करना, किराया देना,  बार और जैज़ क्लबों में अड्डा जमाना और हर रात, सोने से पहले, अपने ईस्ट तेरहवीं स्ट्रीट के अपार्टमेन्ट की चूहेदानियों में पीनट बटर का चारा डालना.

-- चार्लज़ सिमिक 

इस लेख का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

सोमवार, मई 21, 2012

शाम की सैर


  पाइन ट्रीज़, काप द'ओंतीब, क्लौद मोने
Pine Trees, Cap d'Antibes, Claude Monet
तुम आभास देते हो सुनने का
मेरे विचारों को, ओ पेड़ों,
इस तरह झुक कर उस सड़क पर जहाँ
मैं चल रहा हूँ इस गर्मियों के आखिर की शाम
जब तुम में से हर एक है एक खड़ी ढाल की सीढ़ी
जिससे रात नीचे उतर रही है.

पत्ते है मेरी माँ के होंठों जैसे,

हमेशा कांपते हुए, निर्णय करने में असमर्थ,
क्योंकि आज ज़रा हवा चल रही है,
और यह है कुछ आवाजें सुनने जैसा
या है दबी हुई हंसी से भरे हुए मुंह जैसा
जिसमे हम सब समा सकें एक बड़ा अँधेरा मुंह
अचानक एक हथेली से ढका हुआ.

सब शांत है. किसी और शाम
की रोशनी आगे टहल रही है,
बहुत समय पहले की शाम लम्बी ड्रेसों वाली,
नुकीले जूतों वाली, चांदी के सिगरेट-केस वाली.
आनंदित मन, तुम गहराते सायों में
जल्दी-जल्दी उन का पीछा करते हुए
कितने बोझिल कदम उठाते हो.

ऊपर आकाश अभी भी नीला है
रात के पंछी उन बच्चों की तरह हैं
जो भोजन के लिए नहीं आयेंगे.
स्वयं को गीत सुनाते खोये हुए बच्चे. 



-- चार्लज़ सिमिक





चार्लज़ सिमिक (Charles Simic ) एक सर्बियाई-अमरीकी कवि, निबंधकार, अनुवादक व दार्शनिक हैं। उनका जन्म युगोस्लाविया में हुआ और वे युद्ध-त्रस्त यूरोप में बड़े हुए। 1954 में,16 वर्ष की आयु में वे अपने परिवार के साथ अमरीका आ गए। 70 के दशक तक वे कवि के रूप में स्थापित हो गए। उनकी कविताएँ सूक्ष्म व बिम्बों से भरपूर होती हैं। वे पेरिस रिव्यू के सम्पादक रह चुके हैं व अमरीका के 15 वें पोएट लौरियेट भी। आजकल वे अमरीकी साहित्य व क्रिएटिव राइटिंग के प्रोफ़ेसर एमेरिटस हैं, व यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू हेम्पशियर में पढ़ाते हैं। उन्हें अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं. उनकी कविताओं के 30 से अधिक संकलन, अनुवादों के 15 संकलन व गद्य के 8 संकलन प्रकाशित हो चुके है।
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

शनिवार, मई 19, 2012

आँखें

 सेल्फ-पोर्ट्रेट इन फेल्ट हैट, पॉल सेज़ान
Self-Portrait in Felt Hat, Paul Cezanne



जिस दिन उसकी प्रियतमा की मृत्यु हुई
उसने बूढ़े होने का फैसला कर लिया
और कर लिया स्वयं को बंद
अकेले, खाली घर के अन्दर
केवल उसकी यादों के साथ
और उस बड़े उजले आईने के साथ
जिस में देख कर वह अपने बाल बनाती थी.
इस सोने के बड़े से खंड को
वह एक लोभी की तरह सहेजता-बटोरता था,
सोचता था, कि कम-से-कम यहाँ तो
वह कैद कर लेगा बीते दिनों को,
सुरक्षित रख लेगा इस एक चीज़ को.

मगर पहली बरसी के आस-पास,

वह उसकी आँखों के बारे में सोचने लगा
और घबरा गया : वे भूरी थीं या काली,
या धूसर? हरी? हे भगवान! कह नहीं सकता....

वसंत की एक सुबह, उसके भीतर कुछ दरक गया;

अपने दोहरे दुःख को सलीब की तरह कंधे पर उठाये,
उसने बाहर का दरवाज़ा बंद किया, सड़क पर आया
और अभी दस गज भी न चला था कि एक अँधेरे प्रांगण से
उसे मिली एक जोड़ी आँखों की झलक. अपना हैट
नीचे खींच वह आगे बढ़ गया...हाँ, वे ऐसे ही थीं; ऐसी ही...



-- डान पेटरसन




डान पेटरसन ( Don Paterson ) स्कॉटलैंड के कवि,लेखक  व संगीतकार हैं. वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेंट एंड्रूज़ में अंग्रेजी पढ़ाते हैं, लन्दन के प्रकाशक 'पिकाडोर' के लिए पोएट्री एडिटर हैं और एक बेहतरीन जैज़ गिटारिस्ट हैं . अपने पहले कविता संकलन 'निल निल' से ही उन्हें पहचाना जाने लगा व अवार्ड मिलने लगे. अपने संकलन ' गाडज़ गिफ्ट टू विमेन ' के लिए उन्हें टी एस एलीअट प्राइज़ प्राप्त हुआ. उनके एक और संकलन 'लैंडिंग लाईट ' को विटब्रेड पोएट्री अवार्ड व फिर से टी एस एलीअट प्राइज़ प्राप्त हुआ. उन्होंने दूसरी भाषाओँ से अंग्रेजी में बहुत अनुवाद भी किया है जिन में से सबसे उल्लेखनीय स्पेनिश कवि अंतोनियो मचादो व जर्मन कवि रिल्के की रचनाएँ हैं. उन्होंने कई कविता संकलनों का संपादन किया है, नाटक लिखे हैं व विशेष रूप से रेडियो नाटक लिखे हैं. यह कविता उनके संकलन 'आईज ' से है, जिसे  स्पेनिश कवि अंतोनियो मचादो की कविताओं का अनुवाद भी कहा जा सकता है, या कहा जा सकता है की ये कविताएँ, उनकी कविताओं से प्रेरित हैं.

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
 

गुरुवार, मई 17, 2012

कंधे

मैन कैरिंग बॉय, पिएर-ओग्यूस्त रनोआ 
Man Carrying Boy, Pierre-Auguste Renoir
बारिश में एक आदमी सड़क पार करता है 
कदम सावधानी से रखता, दो-दो बार उत्तर-दक्षिण देखता,
क्योंकि उसके कंधे पर उसका बेटा सो रहा है.

किसी गाड़ी से उस पर छींटे नहीं पड़ने चाहिए.
कोई  गाड़ी नहीं निकलनी चाहिए उस की छाया के भी पास से.

आदमी ढो रहा है दुनिया का सब से प्यारा माल 
मगर उस पर नहीं बना हुआ  कोई  चिन्ह. 
उसकी जैकिट पर कहीं नहीं लिखा -- फ्रैजाइल,
हैंडल विद केयर.

चलती साँसों का स्वर आदमी के कानों में भर जाता है.
वह सुनता है एक बच्चे के स्वप्न की गुंजन
अपने ही भीतर गहरे कहीं. 

इस दुनिया में 
हम रह नहीं पाएंगे
अगर हम एक-दूसरे के साथ 
नहीं तैयार वह करने को जो यह आदमी कर रहा है.

सड़क चौड़ी ही रहेगी.
बारिश कभी गिरनी बंद नहीं होगी.


-- नाओमी शिहाब नाए 



 नाओमी शिहाब नाए ( Naomi Shihab Nye )एक फिलिस्तीनी-अमरीकी कवयित्री, गीतकार व उपन्यासकार हैं. वे बचपन से ही कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. फिलिस्तीनी पिता और अमरीकी माँ की बेटी, वे अपनी कविताओं में अलग-अलग संस्कृतियों की समानता-असमानता खोजती हैं. वे आम जीवन व सड़क पर चलते लोगों में कविता खोजती हैं. उनके 7 कविता संकलन और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक अवार्ड व सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अनेक कविता संग्रहों का सम्पादन भी किया है. यह कविता उनके संकलन " रेड सूटकेस " से है.  

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

मंगलवार, मई 15, 2012

एक दिन की कहानी

अ व्हीटफील्ड ऑन ए समर आफ्टरनून,
मार्क 
शगाल
A Wheatfield on a Summer Afternoon,
Marc Chagall
1.
बादल करते हैं कठिन परिश्रम  भविष्य के लिए 
और बारिश को करना है सिद्ध उनके श्रम का बल.
2.
जहाज़ उठा कर चलते हैं समुद्र को 
समुद्र 
कराहते हैं जहाज़ी-सपनों के बोझ तले 
3.
मेंढक पहनते हैं पानी के जूते.
अपनी सबसे सुन्दर कमीजें पहन पाखी प्रवास करते हैं.
4.
हवा गिर जाती है दूसरों के लिए बिछाए अपने ही जाल में.
5.
एक राजकुमारी-सा सूर्य बैठता है क्षितिज के प्रतीक्षा-कक्ष में.
मित्र होते हैं एकत्रित,
मकड़ियाँ और पंछी,
राजसी तितलियाँ और कामकाजी मधुमक्खियाँ,
झींगुर और छिपकलियाँ, 
एक ही इच्छा के अतिथि,
कोई अंतर नहीं झींगुरों और छिपकलियों के बीच.
सूर्य अपने रथ पर सवार चलता है 
और उसके अतिथि करते हैं राज्य पर शासन.
6.
एक पेड़ की टहनियों से उठती है आवाज़ 
हवा के, बिना उसको जाने,
बहा कर ले जाने के लिए.
7.
कवि जब लिखता है 
वह बन जाता है
भाषा के हाथों की वीणा.
8.
क्योंकि मैं प्रायः मौन रहता हूँ
शब्द मेरी खाल में से रिसते हैं.
9.
समय, तुम जो सिले हुए हो मुझ से,
मेरी कविताएँ तुम्हें काढ़ती हैं
और मेरी आवाज़ है अलंकरण और श्रृंगार.
10.
एक देह बन जाती है लिली का फूल और पानी में सोती है;
एक देह शासन करती है आग की झील पर.


-- अदुनिस



Adonis, Griffin Poetry Prize 2011 International Shortlist अली अहमद सईद अस्बार ( Ali Ahmed Said Asbar ), जो 'अदुनिस' ( Adonis )के नाम से लिखते हैं, सिरिया के प्रसिद्ध कवि व लेखक हैं. वे आधुनिक अरबी कविता के पथप्रदर्शक हैं, जिन्होंने पुरानी मान्यताओं से विद्रोह कर कविता के अपने ही नियम बनाये हैं. अब तक अरबी में उनकी 20से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनके अनेक कविता संग्रह अंग्रेजी में अनूदित किये जा चुके हैं. अभी हाल-फिलहाल में, अगस्त माह के आखिरी सप्ताह में ही उन्हें 2011 के  गेटे ( Goethe) पुरुस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें जल्द ही नोबेल प्राइज़ भी मिलेगा , साहित्य जगत में इसकी उम्मीद व अटकलें खूब हैं, वे कई बार नामित भी किये गए हैं. यह कविता उनके संकलन 'सेलेब्रेटिंग वेग-क्लियर थिंग्ज़' से है.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद खालेद मत्तावा ने किया है.
इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू  तलवाड़

रविवार, मई 13, 2012

मैं तुम्हें ऐसे प्यार नहीं करता...

          आमूरः बूके, मार्क शगाल
Amoureux Bouquet, Marc Chagall

मैं तुम्हें ऐसे प्यार नहीं करता जैसे कि तुम हो समुद्र-किनारे 
का गुलाब, या पुखराज, या अग्नि द्वारा छोड़ा गुलनार तीर,
मैं तुम्हें ऐसे प्यार करता हूँ जैसे करना चाहिए 
कुछ गहरी अँधेरी चीज़ों को,
छुप-छुप के, छाया और आत्मा के बीच.

मैं तुम्हें प्यार करता हूँ उस पौधे की तरह जो कभी नहीं 
फूलता मगर भीतर लिए चलता है छुपे फूलों का उजाला;
तुम्हारे प्यार के कारण मेरे बदन में रहती है निराशामय, 
निराली एक ठोस सुगंध जो धरती से हुई है उदित.

मैं तुम्हें प्यार करता हूँ बिना जाने कैसे, या कब, या कहाँ से.
मैं तुम्हें सीधी तरह से प्यार करता हूँ, 
बिना जटिलता, बिना अभिमान के;
तो मैं तुम्हें प्यार करता हूँ क्योंकि इस के सिवाय 

नहीं जानता और कोई राह: जहाँ नहीं है अस्तित्व
मैं का, तुम का,
इतने पास कि मेरी छाती पर रखा तुम्हारा हाथ, मेरा हाथ है 
इतने पास कि मुझे नींद आती हैं तो आँखें तुम्हारी मूँद जाती हैं.


-- पाब्लो नेरुदा 




 पाब्लो नेरुदा ( Pablo Neruda ) को कौन नहीं जानता. वे चिली के कवि थे.कोलंबिया के महान उपन्यासकार गेब्रिअल गार्सिया मार्केज़ ने उन्हें ' 20 वीं सदी का, दुनिया की सभी भाषाओँ में से सबसे बेहतरीन कवि ' कहा है. 10वर्ष की आयु में उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू की. 19वर्ष की आयु में उनका पहला संकलन 'क्रेपेस्क्युलारियो ' प्रकाशित हुआ और उसके बाद उनकी प्रसिद्द प्रेम कविताएँ ' ट्वेंटी पोएम्ज़ ऑफ़ लव एंड अ सोंग ऑफ़ डेसपैर '. दोनों संकलन खूब सराहे गए और दूसरी भाषाओँ में अनूदित लिए गए. उनकी प्रेम कविताओं की तो सहस्रों प्रतियाँ आज तक बिक चुकी है. उनके पूरे लेखन काल में उनकी 50से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई और अनेक भाषाओँ में असंख्य अनुवाद हुए. 1971में उन्हें नोबेल प्राइज़ भी प्राप्त हुआ. यह कविता उनके संकलन '100 लव सोनेट्स ' से है. यह सातवाँ सोनेट है .
इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद स्टीफन टैपस्कोट ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

शुक्रवार, मई 11, 2012

महल से चीनी चुराना

शुगर बोल,
पिएर-ओग्यूस्त र्नोआ
Sugar Bowl,
Pierre-Auguste Renoir
हम निर्धन विद्यार्थी हैं जो रह जाते हैं स्कूल बंद 
होने के बाद पढ़ने के लिए आनंद का पाठ.
भारत के पर्वतों के उन पंछियों जैसे हैं हम.
मैं एक विधवा हूँ और मेरा बच्चा ही है
मेरे जीवन का एकलौता आनंद.

अपने चींटी जैसे सर में जो एक बात मैं रखता हूँ
वह है चीनी के महल की बनावट का नक्शा.
कितना आनंद है चुराने में चीनी का एक दाना!

एक पंछी की तरह, अँधेरे से उड़ कर जाते हैं 
महल के बड़े कक्ष में, जो गायन से जगमग है,
और फिर उड़ कर बाहर आ जाते हैं.
बड़े कक्ष की गर्माहट से निकाला जाना 
भी एक आनंद है.

मैं ढीला हूँ, आलसी हूँ, और हूँ मूर्ख. मगर मुझे 
उन लोगों के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है 
जिन्होंने पाई थी एक झलक उस चेहरे की, 
और ख़ुशी से मर गए थे बीस साल बाद.

तुम्हारे कहे का, कि मैं जल्द ही मर जाऊंगा,
बुरा नहीं मानताजल्द ही, 
इन शब्दों के स्वर में भी मैं सुनता हूँ शब्द 'तुम',
जिस से आरम्भ होता है हर आनंद भरा वाक्य. 

"तुम चोर हो" न्यायाधीश ने कहा. "दिखाओ 
अपने हाथ!" मैंने दिखाए अपने छालों-भरे हाथ अदालत में.
मेरा दण्ड था आनंद के एक हज़ार साल.


--- रोबर्ट ब्लाए 



 रोबर्ट ब्लाए ( Robert Bly ) अमरीकी कवि,लेखक व अनुवादक हैं. 36 वर्ष की आयु में उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ, मगर उस से पहले साहित्य पढ़ते समय उन्हें फुलब्राईट स्कॉलरशिप मिला और वे नोर्वे जाकर वहां के कवियों की कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी में करने लगे. वहीं पर वे दूसरी भाषाओँ के अच्छे कवियों से दो-चार हुए - नेरुदा, अंतोनियो मचादो, रूमी, हाफिज़, कबीर, मीराबाई इत्यादि. अमरीका में लोग इन कवियों को नहीं जानते थे. उनके अनेक कविता संग्रह प्रकाशित हुए और उन्होंने खूब अनुवाद भी किया है. अमरीका के वे लोकप्रिय कवि हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा में उनके लिखे 80,000 पन्नों की आर्काइव है, जो उनका लगभग पचास वर्षों का काम है. यह कविता उनके संकलन 'माए सेंटेंस वाज़ अ थाऊजेंड यिअर्ज़ ऑफ़ जोय' से है .

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

बुधवार, मई 09, 2012

कहाँ से आती है ऐसी कोमलता?

 नियर सें यने, मार्क शगाल
Near Saint Jeannet, Marc Chagall
कहाँ से आती है ऐसी कोमलता?
ये बालों के घूँगर जो मैंने अपनी 
ऊँगली पर लपेटे हैं, पहले नहीं हैं ये -- 
तुम्हारे होंठों से और गहरे रंग के 
होंठों को भी चूमा है मैंने.

आकाश धुला हुआ और गहराता है 
कहाँ से आती है ऐसी कोमलता? )
मेरी आँखों को अन्य आँखों ने  भी 
जाना है और फिर दृष्टि हटा ली है.

मगर मैंने कभी ऐसे शब्द नहीं सुने 
रात में 
कहाँ से आती है ऐसी कोमलता ? )
अपना सर तुम्हारी छाती पर टिकाए, 
आराम.

कहाँ से आती है यह कोमलता?
और मैं इसका करुँगी क्या
अजनबी, युवा कवि, शहर में 
भटकते, तुम और तुम्हारी पलकें -- 
किसी और से कितनी लम्बी हैं.


-- मारीना स्व्ताएवा 


 मारीना स्व्ताएवा ( Marina Tsvetaeva ) बहुत प्रसिद्द रूसी लेखिका व कवयित्री थीं और उनको 20 वीं सदी के बेहतरीन रूसी साहित्यकारों में गिना जाता है. 18 वर्ष की आयु में उनका पहला कविता संकलन 'ईवनिंग एल्बम' प्रकाशित हुआ. वे रूसी क्रांति व उसके बाद मास्को में पड़े अकाल के समय वहीँ थी. क्योंकी वे क्रांति के खिलाफ थी उन्हें निर्वासित कर दिया गया. कई साल वे अपने परिवार के साथ गरीबी की हालत में पेरिस, बेर्लिन्र व प्राग में रहीं. मास्को लौटने के बाद भी उन्हें शक की नज़र से देखा जाता रहा व उनके परिवार को कसी न किसी कारण से सताया जाता रहा, उनकी बेटी कई वर्ष जेल में रहीं, व पति को मार डाला गया. बिना किसी आर्थिक सहारे के व नितांत अकेलेपन में, उन्होंने आत्महत्या कर ली.
इस कविता का मूल रशियन से अंग्रेजी में अनुवाद इल्या कामिन्सकी व यौं वालोंतीन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

सोमवार, मई 07, 2012

एक पन्ना रात की किताब से

बोस्फोरस  बाय  मून लाईट , इवान  आयेवाज़ोव्सकी
Bosphorus by Moonlight, Ivan Aivazovsky

मई की रात की ठंडी चांदनी में
मैंने किनारे पर रखा कदम  
जहाँ घास और फूल धूसर थे
मगर खुशबू हरी.

रंगों से अनजानी रात में 
मैं ढलान पर धीमे-धीमे चढ़ा 
जिस समय सफ़ेद पत्थर 
इशारे कर रहे थे चाँद को 

समय की एक अवधि 
कुछ ही क्षण लम्बी 
अट्ठावन साल चौड़ी.

और मेरे पीछे 
सीस-रंग में झिलमिलाते पानी के पार 
था दूसरा छोर 
और वे जो शासन करते हैं.

लोग जिनके चेहरे की जगह
है भविष्य.


-- तोमास त्रांसत्रोमर 



 तोमास त्रांसत्रोमर ( Tomas Tranströmer )स्वीडन के लेखक, कवि व अनुवादक हैं जिनकी कविताएँ न केवल स्वीडन में, बल्कि दुनिया भर में सराही गयीं हैं. उन्हें 2011 का नोबेल पुरुस्कार प्राप्त हुआ है. उन्होंने 13 वर्ष की आयु से ही लिखना शुरू कर दिया था. उनके 12 से अधिक  कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं व उनकी कविताएँ लगभग 50 भाषाओँ में अनूदित की गईं हैं. उन्हें अपने लेखन के लिए अनेक सम्मान प्राप्त हुए है जिनमे इंटरनैशनल पोएट्री फोरम का स्वीडिश अवार्ड भी शामिल है. वे नोबेल प्राइज़ के लिए कई वर्षों से नामित किये जा रहे थे. लेखन के इलावा वे जाने-माने मनोवैज्ञानिक भी थे, जो कार्य उन्हें स्ट्रोक होने के बाद छोड़ना पड़ा. उनका एक हाथ अभी भी नहीं चलता है, मगर दूसरे हाथ से वे अब भी लिखते हैं. यह कविता उनके संकलन ' द सैड गोंडोला' से है.

इस कविता का मूल स्वीडिश से अंग्रेजी में अनुवाद उनके कवि रोबेर्ट फुल्टन ने किया है.

इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

शनिवार, मई 05, 2012

आनंद में बुद्ध

बुद्ध - द विनर, निकोलाई ररीह
Buddha - The Winner, Nicholas Roerich

मध्यबिन्दुओं के मध्यबिंदु, 
अंतरतम तत्व,
अपने ही आलिंगन में 
मीठे होते बादाम --
यहाँ से सितारों तक, 
यह सब, 
तुम्हारी देह का फल है. 
तुम्हें नमन करते हैं हम.

तुम महसूस करते हो 
कि अब कुछ भी ऐसा नहीं है
जो तुम्हें व्यापता हो.
अनंतता तुम्हारा आवरण है
और है तुम्हारी शक्ति भी.
उसे बुलाया है 

उन पूर्ण व दीप्त सूर्यों के तेज ने
जो तुम्हारी परिक्रमाएँ  करते हैं.
फिर भी उन सितारों से
कहीं बाद तक बना रहेगा 
वह जो तुमने किया है आरम्भ.


-- रायनर मरीया रिल्के 


 रायनर मरीया रिल्के ( Rainer Maria Rilke ) जर्मन भाषा के सब से महत्वपूर्ण कवियों में से एक माने जाते हैं. वे ऑस्ट्रिया के बोहीमिया से थे. उनका बचपन बेहद दुखद था, मगर यूनिवर्सिटी तक आते-आते उन्हें साफ़ हो गया था की वे साहित्य से ही जुड़ेंगे. तब तक उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित भी हो चुका था. यूनिवर्सिटी की पढाई बीच में ही छोड़, उन्होंने रूस की एक लम्बी यात्रा का कार्यक्रम बनाया. यह यात्रा उनके साहित्यिक जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. रूस में उनकी मुलाक़ात तोल्स्तॉय से हुई व उनके प्रभाव से रिल्के का लेखन और गहन होता गुया. फिर उन्होंने पेरिस में रहने का फैसला किया जहाँ वे मूर्तिकार रोदें के बहुत प्रभावित रहे.यूरोप के देशों में उनकी यात्रायें जारी रहीं मगर पेरिस उनके जीवन का भौगोलिक केंद्र बन गया. पहले विश्व युद्ध के समय उन्हें पेरिस छोड़ना पड़ा, और वे स्विटज़रलैंड में जा कर बस गए, जहाँ कुछ वर्षों बाद ल्यूकीमिया से उनका देहांत हो गया. कविताओं की जो धरोहर वे छोड़ गए हैं, वह अद्भुत है. यह कविता उनके संकलन 'न्यू पोएम्ज़' से है. 
इस कविता का जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद जोआना मेसी व अनीता बैरोज़ ने किया है. 
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़