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व्हीटफील्ड विद क्रोज़, विन्सेंट वान गोग Wheatfield With Crows, Vincent Van Gogh |
एक ठंडी हवा बहती है मक्का के खेतों पर;
काले पंछियों के बेड़े
डूबते-उतराते हैं उस समुद्र में.
मैं होना चाहता हूँ वहां उस निरंकुश में,
बाहर खुले में, रहना चाहता हूँ हवा में कहीं.
ओसारी की दीवार से पीठ टिका कर
बैठ जाता हूँ मैं आराम से,
यहाँ मुझे कोई ढूंढ नहीं सकता.
मैं एकटक देखता हूँ एल्डर पेड़ के पत्तों को
लहराते हुए इस रहस्यमय पानी में.
आखिर वह क्या है जो मैं चाहता हूँ? पैसा नहीं,
ना ही बड़ी-सी डेस्क या दस कमरों वाला घर.
जो मैं करना चाहता हूँ वह यही है, बस यूँ ही बैठना,
बिना भाग लिए, और हवा का मुझे बुला ले जाना.
--- रोबर्ट ब्लाए

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़