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नाईट, मिकलोयुस चिर्लोनिअस Night, Mikalojus Ciurlionis |
और ऐसा हुआ उस समय...कविता मुझे
खोजती हुई आई. पता नहीं,
पता नहीं कहाँ से,
कूद पड़ी वो, जाड़ों से या नदी से.
पता नहीं कब और कैसे,
नहीं, शब्द नहीं, आवाजें
नहीं, मौन भी नहीं,
मगर मुझे सड़क से बुलाया गया,
रात की टहनियों से,
अचानक, औरों से,
प्रचण्ड लपटों में,
या अकेले लौटते हुए,
मैं, बिना चेहरे के था,
जब उसने मुझे छुआ.
मैं जानता नहीं था कहना, मेरा मुंह,
कोई नाम नहीं,
मेरी आँखें,
अंधी थीं,
फिर कुछ होने लगा मेरी आत्मा में,
ज्वर या खो चुके पंख जैसा,
और मैं पहुँच गया अकेला,
उस अग्नि की
गूढ़ लिपि खोलता,
और मैंने लिखी पहली, अस्पष्ट पंक्ति,
अस्पष्ट, बिना तत्व की, बिल्कुल
अनर्थक,
कुछ नहीं जानने वाले का
विशुद्ध ज्ञान,
और अचानक देखा
ताले खोलता
आकाश,
और खुलना,
नक्षत्रों,
स्पंदित होते अंतरिक्षों,
छिद्रित छायाओं का,
जो छलनी है
ज्वालाओं से, फूलों से, उड़ानों से,
घूमती रात से, ब्रह्माण्ड से.
और मैं इस सब में सबसे छोटा, तुच्छ,
इस विशाल शून्य से मदहोश,
तारों से आच्छादित,
छवि में, रहस्य
का प्रतिरूप,
मुझे लगा जैसे कि मैं हूँ
वितल का अनन्य अंग,
तारों के उजालों के संग घूमता,
मेरा मन बहती हवा में मुक्त उड़ने लगा.
-- पाब्लो नेरुदा

इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद ए एस क्लाइन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड