रविवार, अगस्त 07, 2011

ईश्वर से प्रश्न

द कैथीड्रल, ओग्यूस्त रोदें
The Cathedral, Auguste Rodin 

हे ईश्वर :
जब हम प्यार करते हैं हम पर क्या विजय पा लेता है?
हमारे भीतर गहरे कहीं क्या होने लगता है?
हमारे अन्दर क्या टूट जाता है?
ऐसा कैसे है कि जब प्यार करते हैं 
लौट जाते हैं हम एक बार फिर बचपन में ?
ऐसा कैसे होता है कि पानी की एक बूँद 
बन जाती है सागर 
ताड़ के पेड़ और ऊंचे हो जाते है 
समुद्र का पानी और मीठा 
सूरज एक कीमती हीरों-जड़ा कंगन कैसे बन जाता है
जब हम प्यार करते हैं?

हे ईश्वर :
जब अचानक प्यार घटित होता है 
वह क्या है जो हम अपने में से जाने देते हैं?
वह क्या है जो हम में पैदा हो जाता है?
क्यों हम नन्हे स्कूली बच्चों-से 
सरल और मासूम हो जाते हैं?
और ऐसा क्यों होता है 
कि जब हमारी प्रियतमा हँसती है 
दुनिया करती है हम पर मोगरे की बारिश 
ऐसा क्यों होता है 
कि जब वह हमारे काँधे पर सर रख कर रोती है 
दुनिया एक दुःख भरा पंछी बन जाती है?

हे ईश्वर :
उसे क्या कहते हैं, उस प्यार को
जिसने सदियों-सदियों आदमियों को मार डाला है, 
किलों को जीता है 
शक्तिशाली को नीचा दिखाया है 
निरीह और सीधे-सादे लोगों को पिघलाया है?
ऐसा कैसे होता है कि हमारी प्रेमिका के बाल 
सोने का बिछौना बन जाते हैं
और उसके होंठ मदिरा और अंगूर?
ऐसा कैसे है कि हम आग में से गुज़रते हैं
और आंच का आनंद उठाते हैं?
हम बंदी कैसे बन जाते हैं जबकि हमने प्यार 
विजयी राजा होने के बाद किया होता है?
उस प्यार को हम क्या कहते हैं 
जो चाक़ू की तरह हमारे अन्दर घुस जाता है ?
क्या वह एक सरदर्द है?
क्या वह पागलपन है?
ऐसा कैसे होता है कि बस एक ही पल में 
दुनिया एक हरी-भरी वादी...
एक मधुर-सी जगह बन जाती है
जब हम प्यार करते हैं?

हे ईश्वर :
हमारी बुद्धि को क्या हो जाता है? 
हमें क्या हो जाता है?
ललक का एक पल बरसों लम्बा कैसे हो जाता है 
और माया प्यार में यथार्थ कैसे बन जाती है?
कैसे साल के सप्ताह एक-दूसरे से जुड़े नहीं रह पाते?
ऐसा कैसे होता है कि प्यार मौसमों के भेद मिटा देता है?
तो सर्दियों में गर्मियाँ हो जाती हैं 
और जब हम प्यार करते हैं 
आकाश के बागीचों में गुलाब खिलने लगते हैं ?

हे ईश्वर :
हम प्यार के सामने समर्पण कैसे करें,
कैसे सौंप दे उसको अपने अंतर्मन की चाबी
उसके सामने दिए जलाएँ, सुगंध ले जाएँ 
ऐसा कैसे होता है कि क्षमा मांगते हुए,
हम उसके पैरों में गिर जाते हैं 
ऐसा कैसे होता है कि
हम चाहते हैं उसकी रियासत में दाखिल होना
वह हमें जो भी करे 
वह जो भी करे उसके आगे समर्पित होना.

हे ईश्वर :
अगर तुम सच्चे ईश्वर हो 
तो हमें हमेशा प्रेमी रहने देना.


-- निज़ार क़ब्बानी 


 निज़ार क़ब्बानी ( Nizar Qabbani )सिरिया से हैं व अरबी भाषा के कवियों में उनका विशिष्ट स्थान है. उनकी सीधी सहज कविताएँ अधिकतर प्यार के बारे में हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या वे क्रन्तिकारी हैं, तो उन्होंने कहा -- अरबी दुनिया में प्यार नज़रबंद है, मैं उसे आज़ाद करना चाहता हूँ. उन्होंने 16 की उम्र से कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थीं, और उनके 50 से अधिक कविता-संग्रह छप चुके हैं. उनकी कविताओं को कई प्रसिद्ध अरबी गायकों ने गया है, जिन में मिस्र की बेहतरीन गायिका उम्म कुल्थुम भी हैं, जिनके गीत सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे. 
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद लेना जाय्युसी और डब्ल्यू एस मर्विन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़