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मिस्टी मार्निंग ऑन द सेन, सनराइज, क्लौद मोने Misty Morning on the Seine, Sunrise, Claude Monet |
प्रकट होते हो तुम घाटी में
तुम्हारे सूर्य की पहली रश्मि होती है
अवतरित छूने के लिए कुछ
ऊँचे पत्तों को जिनमें नहीं है कोई हलचल
मानो उन्होंने दिया ही न हो ध्यान
और तुम्हें बिलकुल ही न जानते हों
फिर उठता है एक कबूतर का स्वर
कहीं दूर से स्वयं में मग्न
जो पुकारता है भोर की नीरवता को
तो यह है स्वर तुम्हारे
यहाँ और इस पल होने का
चाहे कोई इसे सुन पाए न सुन पाए
यह है वह स्थान जहाँ हम पहुँच चुके हैं
अपने युग के साथ अपने ज्ञान के साथ
जैसा भी वह है
और अपनी आशाओं के साथ
जैसी भी वे हैं
हमारे सामने अदृश्य
अछूती और अभी भी संभव
-- डब्ल्यू एस मर्विन

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़