गुरुवार, दिसंबर 15, 2011

मैं तुम्हें चाहता हूँ

द लवर्ज़ हेवन, मार्क शगाल
The Lover's Heaven, Marc Chagall

मैं तुम्हें चाहता हूँ 
जैसे रोटी को नमक के साथ खाना 
जैसे तेज़ बुखार में रात को उठना 
और नल से मुंह लगा कर पानी पीना 
जैसे डाकिए का लाया 
भारी-भरकम पार्सल खोलना 
तेज़ धडकनें लिए, आनंदित, अनिश्चित 
एकदम बिना जाने कि उस में है क्या 
मैं तुम्हें चाहता हूँ 
जैसे हवाईजहाज़ में 
समुद्र के ऊपर से पहली उड़ान भरना 
जैसे मेरे भीतर कुछ आंदोलित होता है 
जब इस्तानबुल में धीरे-से अँधेरा होने लगता है  
मैं तुम्हें चाहता हूँ 
जैसे ईश्वर का आभारी होना
कि हम जीवित हैं.


-- नाज़िम हिकमत




नाज़िम हिकमत ( Nazim Hikmat) तुर्की के कवि , उपन्यासकार व नाटककार थे. उन्हें 28  वर्ष की क़ैद हो गयी थी , इस जुर्म पर कि उनकी कविताएँ पढ़ कर तुर्की सेना विद्रोह करने को प्रेरित होती है. अपना अधिकाँश जीवन उन्होंने जेल में या तुर्की से निर्वासित हो, दूसरे देशों में बिताया. चाहे तुर्की सरकार ने उन्हें खूब तंग किया, तुर्की के लोगों के मन में उनके लिए हमेशा बहुत इज्ज़त रही क्योंकि उनका लिखा लोगों के मन की बात कहता था. उनका देहांत मास्को में हुआ और वे वहीँ दफनाये गए. 1950 में उन्हें नोबेल पीस प्राइज़ प्राप्त हुआ. उनका एक उपन्यास, 4  नाटक व कई कविता संकलन प्रकाशित हुए. उनकी कविताओं का 50 से भी अधिक भाषाओँ में अनुवाद हुआ है. 
इस कविता का मूल तुर्की से अंग्रेजी में अनुवाद फ़तेह अक्गुल ने कियहै.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़