मंगलवार, दिसंबर 27, 2011

प्रवेश

अलेक्ज़ांदर पुश्किन एट द सीशोर, लिओनिद पास्तरनाक
Alexander Pushkin At The Seashore, Leonid Pasternak
जो कोई भी हो तुम, 
इस शाम में बाहर निकल के देखो.
जहाँ सब जाना-पहचाना है 
बाहर निकल के देखो उस कमरे से.
जो कोई भी हो तुम 
तुम्हारा घर आखिरी घर है 
उस दूरस्थ से पहले.
जो जाने-पहचाने से 
खुद को छुड़ाते-छुड़ाते कुछ अधिक ही 
थक गयी हैं, अपनी उन आँखों से, 
हौले-से उठाते हो तुम एक काला पेड़ 
और रख देते हो उसे आकाश के सामने: छरहरा, अकेला.
और ऐसे ही तुमने बना ली है एक दुनिया.
वह बड़ी है 
और एक शब्द की तरह, पक रही है अभी भी मौन में.
और भले ही तुम्हारा दिमाग गढ़ लेगा उसके मायने,
तुम्हारी आँखें जो भी देखती हैं 
उसे कोमलता से
छोड़ देती हैं, जाने देती हैं.


 -- रायनर मरीया रिल्के 



 रायनर मरीया रिल्के ( Rainer Maria Rilke ) जर्मन भाषा के सब से महत्वपूर्ण कवियों में से एक माने जाते हैं. वे ऑस्ट्रिया के बोहीमिया से थे. उनका बचपन बेहद दुखद था, मगर यूनिवर्सिटी तक आते-आते उन्हें साफ़ हो गया था की वे साहित्य से ही जुड़ेंगे. तब तक उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित भी हो चुका था. यूनिवर्सिटी की पढाई बीच में ही छोड़, उन्होंने रूस की एक लम्बी यात्रा का कार्यक्रम बनाया. यह यात्रा उनके साहित्यिक जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. रूस में उनकी मुलाक़ात तोल्स्तॉय से हुई व उनके प्रभाव से रिल्के का लेखन और गहन होता गुया. फिर उन्होंने पेरिस में रहने का फैसला किया जहाँ वे मूर्तिकार रोदें के बहुत प्रभावित रहे.यूरोप के देशों में उनकी यात्रायें जारी रहीं मगर पेरिस उनके जीवन का भौगोलिक केंद्र बन गया. पहले विश्व युद्ध के समय उन्हें पेरिस छोड़ना पड़ा, और वे स्विटज़रलैंड में जा कर बस गए, जहाँ कुछ वर्षों बाद ल्यूकीमिया से उनका देहांत हो गया. कविताओं की जो धरोहर वे छोड़ गए हैं, वह अद्भुत है. यह कविता उनके संकलन 'बुक ऑफ़ इमेजिज़ ' से है.
इस कविता का जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद जोआना मेसी व अनीता बैरोज़ ने किया है. 
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़