रविवार, जुलाई 29, 2012

दोपहरों में झुकते हुए

द लाईट हाउस , लेव लागोरियो
The Light House, Lev Lagorio
दोपहरों में झुकते हुए मैं फेंकता हूँ अपने उदास जाल
तुम्हारी समुद्र-सी आँखों की ओर.

वहाँ सबसे ऊँची लपट में मेरा एकांत दीर्घ होता है, दहकता है,
उसकी बाहें डूबते आदमी-सी हिलती है.

मैं भेजता हूँ लाल संकेत तुम्हारी अनुपस्थित आँखों के पार
जो दीपगृह के पास के समुद्र-सी लहराती हैं.

मेरी दूरस्थ स्त्री, तुम रखती हो केवल अन्धकार,
तुम्हारी दृष्टि से उभरती है कभी-कभी भय की तटरेखा.

दोपहरों में झुकते हुए मैं फेंकता हूँ अपने उदास जाल
उस समुद्र में जो टकराता है तुम्हारी समुद्री आँखों पर.

रात के पंछी चुगते हैं पहले तारे
जो चौंधते हैं मेरे प्राणों की तरह जब मैं तुम्हें प्यार करता हूँ.

रात सरपट दौड़ती है अपनी मायामय घोड़ी पर
धरती पर नीले फुंदने ढलकाते हुए.



-- पाब्लो नेरुदा



  पाब्लो नेरुदा ( Pablo Neruda ) को कौन नहीं जानता. वे चिली के कवि थे.कोलंबिया के महान उपन्यासकार गेब्रिअल गार्सिया मार्केज़ ने उन्हें ' 20 वीं सदी का, दुनिया की सभी भाषाओँ में से सबसे बेहतरीन कवि ' कहा है. 10वर्ष की आयु में उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू की. 19वर्ष की आयु में उनका पहला संकलन 'क्रेपेस्क्युलारियो ' प्रकाशित हुआ और उसके बाद उनकी प्रसिद्द प्रेम कविताएँ ' ट्वेंटी पोएम्ज़ ऑफ़ लव एंड अ सोंग ऑफ़ डेसपैर '. दोनों संकलन खूब सराहे गए और दूसरी भाषाओँ में अनूदित लिए गए. उनकी प्रेम कविताओं की तो सहस्रों प्रतियाँ आज तक बिक चुकी है. उनके पूरे लेखन काल में उनकी 50से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई और अनेक भाषाओँ में असंख्य अनुवाद हुए. 1971में उन्हें नोबेल प्राइज़ भी प्राप्त हुआ. यह कविता उनके संकलन '100 लव सोनेट्स ' से है. यह आठवां सोनेट है .
इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद डब्ल्यू एस मर्विन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़