शुक्रवार, अक्तूबर 28, 2011

अनुपस्थिति

नाईट, मिकोलाय ज़ुर्लानिस
Night, Mikalojus Čiurlionis
अपने हाथों में पकड़ते हैं हम अपने हाथों की छाया.
रात भली है --अपनी छाया पकड़े हमें दूसरे नहीं देख पाते.
हम रात का समर्थन करते हैं. हम स्वयं को देखते हैं.
ऐसे हम दूसरों के बारे में बेहतर सोच पाते हैं.
समुद्र अभी भी खोजता है हमारी आँखें और हम वहां नहीं हैं.
एक युवती अपनी छाती में छुपा लेती है अपना प्यार 
और हम मुस्कुराते हुए आँखें फेर कर कहीं दूर देखते हैं.
शायद ऊपर कहीं, तारों की रोशनी में, एक झरोखा खुल जाता है 
जो देखता है समुद्र की ओर, जैतून के पेड़ों और जले हुए घरों की ओर -- 
पितृ-पक्ष के कांच में हम तितली को चक्कर काटते हुए सुनते हैं,
और मछुआरे की बेटी अपनी चक्की में पीसती है शांति.





--- ज्यानिस रीत्ज़ोज़ 



 ज्यानिस रीत्ज़ोज़ ( Yannis Ritsos ) एक युनानी कवि और वामपंथी ऐक्टिविस्ट थे. टी बी और दुखद पारिवारिक समस्याओं से त्रस्त, अपने वामपंथी विचारों के लिए उत्पीड़ित, उन्होंने ने कई वर्ष सैनटोरीअमों, जेलों व निर्वासन में बिताये मगर पूरा समय वे लिखते रहे और अनेक कविताएँ, गीत, नाटक लिख डाले, कई अनुवाद भी कर डाले. अपने दुखों के बावजूद, समय के साथ उनके अन्दर ऐसा बदलाव आया कि वे अत्यंत मानवीय हो गए और उनके लेखन में उम्मीद, करुणा और जीवन के प्रति प्रेम झलकने लगा. उनकी 117किताबे प्रकाशित हुई जिनमे कविताओं के साथ-साथ नाटक व निबंध-संकलन भी थे.

इस कविता का मूल ग्रीक से अंग्रेजी में अनुवाद रे डेलविन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़