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अ गर्ल इन अ वुड, विन्सेंट वान गोग A Girl In A Wood, Vincent Van Gogh |
एक दिन तुम जान गयी
कि आखिर तुम्हें करना क्या है
और निकल पड़ी बस.
आस-पास की आवाज़ें
चिल्ला-चिल्ला कर
देती रहीं बिन मांगी सलाहें,
पूरा घर थरथरा उठा,
पैरों की बेड़ियों ने फिर
खींचा एक बार,
हर आवाज़ चीख उठी--
मेरे जीवन का क्या?
पर तुम नहीं रुकी.
तुम जानती थी कि तुम्हें क्या करना है.
तेज़ हवा अपनी सख्त उँगलियों से
खोदती रही
गहरी उदासी में डूबी तुम्हारी जड़ें.
पहले ही बहुत देर हो चुकी थी
और तूफानी रात में रास्ता
पत्थरों और टूटी टहनियों से भरा था.
फिर धीरे-धीरे
सब आवाज़ें पीछे छूट गयीं.
बादलों की चादर के पीछे
तारे फिर जलने लगे
और चलने लगी तुम्हारे साथ
एक नयी आवाज़
जो तुम्हारी अपनी ही थी.
और तुम लम्बे डग भरती
दूर तक चलती गयी
बहुत दूर तक
ठाने हुए मन से
वह एक चीज़ करने
जिस पर तुम्हारा बस था
बस एक जीवन का उद्धार
-- मेरी ओलिवर

इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़