सोमवार, जून 25, 2012

तीसरा स्तोत्र

ग्रीन इयर्ज़ ऑफ़ व्हीट, विन्सेंट वान गोग
Green Ears of Wheat, Vincent Van Gogh
जिस दिन मेरे शब्द
थे धरती...
मैं गेहूँ की बालियों का मित्र था.

जिस दिन मेरे शब्द

क्रोध थे
मैं था बेड़ियों का मित्र.

जिस दिन मेरे शब्द

थे पत्थर
मैं नदी का मित्र था.

जिस दिन मेरे शब्द

विद्रोह थे
मैं था भूकम्पों का मित्र.

जिस दिन मेरे शब्द थे

कड़वे फल
मैं आशावादी का मित्र था.

मगर जब मेरे शब्द

शहद बन गए...
मक्खियों ने 
मेरे होंठ ढँक लिए! 



-- महमूद दरविश 



महमूद दरविश ( Mahmoud Darwish )एक फिलिस्तीनी कवि व लेखक थे जो फिलिस्तीन के राष्टीय कवि भी माने जाते थे. उनकी कविताओं में अक्सर अपने देश से बेदखली का दुःख प्रतिबिंबित होता है. उनके तीस कविता संकलन व आठ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. अपने लेखन के लिए, जिसका बीस भाषाओँ में अनुवाद भी हो चुका है, उन्हें असंख्य अवार्ड मिले हैं. फिलिस्तीनी लोगों के 'वतन' के लिए संघर्ष के साथ उनकी कविताओं का गहरा नाता है. जबकि उनकी बाद की कविताएँ मुक्त छंद में  लिखी हुईं और कुछ हद तक व्यक्तिगत हैं, वे राजनीती से कभी दूर नहीं रह पाए.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद बेन बेन्नानी  ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़