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ग्रीन इयर्ज़ ऑफ़ व्हीट, विन्सेंट वान गोग Green Ears of Wheat, Vincent Van Gogh |
थे धरती...
मैं गेहूँ की बालियों का मित्र था.
जिस दिन मेरे शब्द
क्रोध थे
मैं था बेड़ियों का मित्र.
जिस दिन मेरे शब्द
थे पत्थर
मैं नदी का मित्र था.
जिस दिन मेरे शब्द
विद्रोह थे
मैं था भूकम्पों का मित्र.
जिस दिन मेरे शब्द थे
कड़वे फल
मैं आशावादी का मित्र था.
मगर जब मेरे शब्द
शहद बन गए...
मक्खियों ने
मेरे होंठ ढँक लिए!
-- महमूद दरविश

इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद बेन बेन्नानी ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़