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ग्रीन इयर्ज़ ऑफ़ व्हीट, विन्सेंट वान गोग Green Ears of Wheat, Vincent Van Gogh |
थे धरती...
मैं गेहूँ की बालियों का मित्र था.
जिस दिन मेरे शब्द
क्रोध थे
मैं था बेड़ियों का मित्र.
जिस दिन मेरे शब्द
थे पत्थर
मैं नदी का मित्र था.
जिस दिन मेरे शब्द
विद्रोह थे
मैं था भूकम्पों का मित्र.
जिस दिन मेरे शब्द थे
कड़वे फल
मैं आशावादी का मित्र था.
मगर जब मेरे शब्द
शहद बन गए...
मक्खियों ने
मेरे होंठ ढँक लिए!
-- महमूद दरविश

इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद बेन बेन्नानी ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
nice sharing...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंमगर जब मेरे शब्द
शहद बन गए...
मक्खियों ने
मेरे होंठ ढँक लिए!
बहुत सच्ची कविता ! मीठा होना कितना मुश्किल है इस जमाने में ! अच्छी कविता के अनुवाद और प्रस्तुतीकरण के लिए धन्यवाद !
अनुवाद न हो तो ये ख्याल हमसे दूर ही रह जायेंगे .... बेजोड़
जवाब देंहटाएंsundar kavita sundartam anuwad,thanks Reenu Jee .
जवाब देंहटाएंमहमूद मेरे पसंदीदा कवियों में से एक है .. जीवन की गतिशीलता को इनसे बेहतर बहुत कम लोगो ने अपने शब्दों में अंकित किया है .. आपको साधुवाद .
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग में आकर बहुत सुख मिला , दुःख तो इस बात का है कि , मैंने पहले क्यों नहीं आ पाया .
अब आते रहूँगा .
विजय
आभार, विजय जी.
जवाब देंहटाएं"जिस दिन मेरे शब्द थे
जवाब देंहटाएंकड़वे फल
मैं आशावादी का मित्र था."
मीठा होना कितना खतरनाक है! सहज अनुवाद है, बड़े कवि की कविता की तरह ही. बधाई, रीनू.