रविवार, जनवरी 22, 2012

सोना और जागना


द वेव, पॉल गोगें
The Wave, Paul Gauguin
सारी रात कोई तुम्हें कुछ बताने की कोशिश करता रहा.
वह आवाज़ एक आश्रय थी, तुम्हें भीतर से खींचती हुई.

मैं कहाँ हूँ, तुम कहती हो, ये सब क्या है और तुम कौन हो?

वह आवाज़ तुम्हें अपने जीवन के तट पर बहा लाती है.
तुम्हें पता ही नहीं था कि यहाँ थल है.

                               
सुबह तुम्हें जगाती हैं समुद्री काक की पुकार.
खिड़की पर पंख फड़फड़ाती, वे चाहती हैं तुमसे दाना.
तुम्हारी पलकें झपकती हैं, तुम्हारे ही हाथ तुम्हें पीछे खींचते हैं.

दिनभर तुम रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े करती हो,
बन जाती हो अपनी सीधी साफ़ राह को मिटाने वाली लहर.


-- नाओमी शिहाब नाए


                                                                                                                                                                                                                     
    

नाओमी शिहाब नाए ( Naomi Shihab Nye )एक फिलिस्तीनी-अमरीकी कवयित्री, गीतकार व उपन्यासकार हैं. वे बचपन से ही कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. फिलिस्तीनी पिता और अमरीकी माँ की बेटी, वे अपनी कविताओं में अलग-अलग संस्कृतियों की समानता-असमानता खोजती हैं. वे आम जीवन व सड़क पर चलते लोगों में कविता खोजती हैं. उनके 7 कविता संकलन और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक अवार्ड व सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अनेक कविता संग्रहों का सम्पादन भी किया है. यह कविता उनके संकलन "वर्डज़ अंडर द वर्डज़ " से है.

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़