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फ्रोग, एंडी वारहोल Frog, Andy Warhol |
अगर वह यही है,
तो मैं सब छोड़, बनना चाहती हूँ एक पंछी, एक तितली,
गर्मियों की छाया, फड़फड़ाता पत्ता,
पानी में इधर-उधर तैरता पंडुक.
आज एक मेंढक ने प्रतीक्षा की, बेला के पौधे के तले,
भोर से पहले की ठंडी गीली बूंदों की.
कितनी शान से वह उठा था
जब पानी ने छुआ था उसकी खाल को --
एक और सुबह के सामने उसका सहज-सा आनंद --
तुलना करो इसकी बमबारी,
गोलीबारी, तोड़-फोड़ और आतंकवाद से
जो लोग करते आ रहे हैं
जितने हम गिन भी ना पायें उस से अधिक देशों में
और पूछो स्वयं से -- मानव या मेंढक?
-- नाओमी शिहाब नाए

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
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