गुरुवार, दिसंबर 06, 2012

नींद

स्पार्कस (II), मिकलोयुस चिर्लोनियस
Sparks (II), Mikalojus Ciurlionis
रात तकिये-सी फूली हुई. अंडे के छिलकों-से शब्द हलके, भुरभुरे,
भंगुर. उनसे परिपूर्ण आकाश.

कितना आसान है जागते रहना. जैसे हो आसानी से चलने वाले दरवाज़े का खोलना. वह खुलता है और वो रहा सीढ़ियों का रास्ता, सीढियाँ, दालान और सड़क की पुकार.

सड़क के किनारे की बत्तियाँ लुभाती हैं, वे हैं रोशनी की धडकनें और
कुण्ड, संचय-बिंदु, और फिर मैदान, नदियाँ.

इन नदियों, समुद्रों के पार हैं नींद के देश, समुद्रतल, जहाजों के
भग्नावशेष, और हैं वे जगमग पथ जो लगभग अनंतता तक काटते हैं
एक-दूसरे को, पुनः काटते हैं.

तो ये पथ हैं और समुद्र है, नदी है, मैदान है, सड़क किनारे की बत्तियाँ हैं,
सड़क है, दालान है, सीढियाँ है, अभी तक खुला दरवाज़ा है, और है रात.

और रात के ह्रदय के भीतर हैं आँखें, उँगलियाँ, मस्तिष्क, मन, अंडे के छिलकों-से
भंगुर शब्द. तुम उन पर चलते हो, सुनते हो उनका स्वर.



-- जॉर्ज सिएरतेश 









जॉर्ज सिएरतेश ( George Szirtes ) कवि व अनुवादक हैं. हालाँकि वे हंगरी से हैं, मगर उनके बचपन में ही, उनका परिवार शरणार्थी बन इंग्लैंड में बस गया था. पहले उनकी कविताएँ पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही, और 31 वर्ष की आयु में उनका पहला संकलन 'द स्लांट डोर ' प्रकाशित हुआ, जिसे  फेबर मेमोरियल प्राइज़ मिला. उसके बाद उनके कई कविता-संग्रह प्रकाशित हुए और उन्हें ' रील ' के लिए 2005 में टी.एस एलियट प्राइज़ प्राप्त हुआ. उन्होंने हंगेरियन में लिखी कविताओं, उपन्यासों, नाटकों व निबंधों का खूब अनुवाद भी किया है. उनकी स्वयं की कविताओं का अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुआ है.
इन तीन लघु कविताओं का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें