शून्य से
जहाँ अर्थ
भटकता है निर्जन वनों में
प्रेम आता है, और ठहर जाता है अद्भुत-सा
हमारी कल्पना से चौड़ा, और ऊंचा
क्या इन्हीं दहकते अंगारों के बीच है आश्रय?
-- अदुनिस

इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद खालेद मत्तावा ने किया है.
इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
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