शनिवार, फ़रवरी 02, 2013

कविता

थौ , पोंतोआज़, कामिल पिस्सार्रो
Thaw, Pontoise, Camille Pissarro
जो सह रहा हो हवा के भीषण थपेड़े
दिखाई न दे रहा हो जिसे बर्फ के अंधड़ के मारे
-- जिसके चारों और एक उत्तर ध्रुवीय ठंडा
नरक दोनों हाथों से पीट रहा हो शहर को --
उस आदमी के लिए जैसे कि
दीवार में खुल जाता है एक द्वार.

वह भीतर जाता है.
पाता है एक बार फिर जीवंत सहानुभूति,
गुनगुने कोने की मिठास. एक भूला हुआ नाम
चूमता है हँसते हुए उन चेहरों को
जिन्हें उसने कभी नहीं देखा था
सिवा अस्पष्ट-से, डरावने सपनों में.

                                          वह लौटता है
सड़क पर, और सड़क भी,
नहीं रही अब पहले जैसी.
अच्छा मौसम लौट आया है, हाथ व्यस्त हैं
बर्फ हटाने में, लौट आया है आसमानी रंग
आकाश में और मन में. और वह सोचने लगता है
कि बुराई का हर चरम करता है अच्छे की भविष्यवाणी



-- उम्बेर्तो साबा





उम्बेर्तो साबा इटली के कवि व उपन्यासकार थे. 20 वीं सदी के आरम्भ में उनका लेखन शुरू हुआ.1910 में उनका पहला कविता-संग्रह प्रकाशित हुआ और 74 वर्ष की आयु तक लगभग 15संकलन व उपन्यास प्रकाशित हो चुके थे. उनको एकांत का कवि कहा गया है, क्योंकि वे अपनी कविताओं में ही जीते थे. उनकी कविताएँ अँधेरे से निकल के, उजालों की ओर जाती दिखाई देती है. उनकी कविताओं का अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुआ है. यह कविता उनके संकलन 'सोंगबुक ' से है.
इस कविता का मूल इटालियन से अंग्रेजी में अनुवाद जोर्ज होचफील्ड व  लेनर्ड नेथन ने किया है.

इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुन्दर कविता ,सुन्दर अनुवाद !

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  2. बरसात के मौसम में यह कविता पढ़ना अच्छा लग रहा है.बुराई हो या अच्छाई अंततः सब अस्थायी हैं.

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