शुक्रवार, अगस्त 05, 2011

संवेदना

व्हीट फील्ड विद साएप्रस, विन्सेंट वान गोग
Wheat Field With Cypress, Vincent Van Gogh


गर्मियों के नीली शामों में, 
पगडंडियों से मैं गुजरूँगा,
उगते गेहूं का गुदगुदाया, 
कटी घास पर चलता, सपनों में खोया, 
मैं पैरों के नीचे से उठती 
ठंडक महसूस करूँगा, और खुले सर पर 
ठंडी हवाओं को बहने दूंगा.

मैं बोलूँगा नहीं, कुछ सोचूंगा भी नहीं :
मगर एक अनंत प्यार उमड़ेगा 
मेरी आत्मा में,
और मैं निकल जाऊँगा दूर, बहुत दूर, 
एक बंजारे की तरह, 
प्रकृति के साथ भी वैसे ही मग्न 
जैसे किसी औरत के साथ होता हूँ.


-- आरथ्यूर रिम्बो 




Arthur Rimbaud, E. Carjat, 1872 - Wikimedia Commons  आरथ्यूर रिम्बो ( Arthur Rimbaud ) 19 वीं शताब्दी के अंत के फ्रांसीसी कवि थे. उनका सारा लेखन 21 वर्ष की आयु से पहले ही हो गया था. विक्टर ह्यूगो उन्हें 'इन्फंट शेक्सपियर' कहा करते थे. वे बहुत अच्छे विद्यार्थी थे मगर उनका बचपन दुखों से भरा था. 16 वर्ष की आयु में वे घर से भाग कर पेरिस आ गए, जहाँ उनकी मुलाकात उम्र में बड़े व स्थापित कवि पॉल वर्लेन से हुई. अपने 17 वें जन्मदिन से पहले ही उनकी लम्बी कविता 'द ड्रंकन बोट' प्रकाशित हुई, जो उनकी स्वयं की आद्यात्मिक भटकन और खोज का रूपक थी. उसी वर्ष उनकी किताब 'ए सीज़न इन हेल' भी प्रकाशित हुई जिसकी खूब आलोचना हुई. दुखी हो कर रिम्बो ने अपना लिख हुआ सब जला दिया. अब तक वे अपने प्रेमी वर्लेन से भी उकता चुके थे जिन्होंने उन्हें अपने पास रोके रखने के लिय उन पर गोली तक चला दी थी. 19वर्ष की आयु में पूरे यूरोप में भटकने के बाद, वे अफ्रीका चले गए जहाँ वे कोई कारोबार करते रहे. कुछ वर्ष बाद उन्हें मृत समझ वर्लेन ने उनका कविता-संकलन 'इल्यूमिनेशंज़' प्रकाशित करवाया, जिसने साहित्य जगत में सनसनी मचा दी. रिम्बो अब प्रतिष्ठित कवियों में गिने जाने लगे थे मगर अपने यश में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं रही थी. 37 वर्ष की आयु में उनका कैन्सर से देहांत हो गया.

इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्यारी कविता .. आपने कविता के मूल भाव के साथ बहुत न्याय किया है .. मैंने दो बार पढ़ी. भाव मन में उतर गए.. दिल से बधाई ....

    आभार
    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

    जवाब देंहटाएं
  2. शुक्रिया विजय जी. मैं ज़रूर देखूँगी आपकी कविता.

    जवाब देंहटाएं