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फार्महाउसिज़ अमंग ट्रीज़, विन्सेंट वान गोग Farmhouses Among Trees, Vincent Van Gogh |
कोई किसी को पुकार रहा था;
अब वह चुप हो गया हैं. शीशे के बाहर
गुलाब की बेल काँपती है.
जैसे कि हौले-हौले हवा चल रही हो,
मगर नहीं चल रही :
मुझे कुछ सुनाई नहीं देता.
पल बीतते जाते हैं,
या लगता है कि बीत रहे हैं, और सूरज,
भोज के पेड़ से ऊपर चढ़ा हुआ
थोड़ी देर टिकता है
अपनी गोलाकार उतराई से पहले.
दोपहर है. एकांत में रहना
एक बात है, मगर अकेले होना, बोलना
और किसी का उस बोले को ना सुनना,
एक ही शब्द को दोबारा बोलना,
या कोई और, जब तक कि
मौन का वहां होना अलग-से ना पहचाना जा पाए
या सोचा जा पाए
कि आखिर वह मौन वहां है किस लिए...
कोई भी नए सिरे से शुरू नहीं कर सकता
एकदम सही शब्द ढूँढकर क्रमशः जानवरों,
पंछियों और पौधों के नाम रखना.
बाड़े के पार कम घना जंगल जगह दे देता है;
रोशनी प्रवेश करती है; रात का बाज़,
उल्लू, नेवला भाग चुके हैं.
भय के पूर्ण अभाव को जानने के लिए
जो वहां नहीं है उससे नहीं डरना
ही ध्येय बन जाता है, वह सहज प्रवृत्ति
की अंतिम पाशविक कम्पन.
हम आगे बढ़ जाते हैं
या आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं,
तथ्यों के बीच, स्वयं को व स्वयं के कृत्यों को
ऐसे नाम देते हुए जैसे कि वे यथार्थ हों.
सूखे पत्ते टहनियों से लिपटे रहते हैं,
जड़ें सहने के लिए कस कर पकडे रहती हैं,
पर कोई आवाज़ आकाश के भ्रम पर
सवाल नहीं उठाती .
-- फिलिप लेवीन

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
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