सोमवार, अगस्त 29, 2011

जाने और ठहरने के बीच

आरयनतयी, लेट आफ्टरनून, क्लौद मोने
Argenteuil, Late Afternoon , Claude Monet

अपनी पारदर्शिता पर मोहित दिन 
झिझकता है जाने और ठहरने के बीच.
यह गोलाकार दोपहर अब एक घाटी है
जहाँ नि:शब्दता में दुनिया झूलती है.
सब प्रत्यक्ष है और सब पकड़ से बाहर,
सब पास है और छुआ नहीं जा सकता.
कागज़, किताब, पेंसिल, गिलास 
अपने-अपने नामों की छाँव में बैठे हैं.
मेरी धमनियों में धड़कता समय 
उसी न बदलने वाले रक्तिम शब्दांश 
को दोहराता है.
रोशनी बना देती है उदासीन दीवार को
प्रतिबिम्बों का एक अलौकिक मंच.
मैं स्वयं को एक आँख की पुतली में 
पाता हूँ, उसकी भावशून्य ताक में 
स्वयं को ही देखता हुआ.
वह पल बिखर जाता है. एकदम स्थिर, 
मैं ठहरता हूँ और जाता हूँ : मैं एक विराम हूँ.



-- ओक्तावियो पास 



  ओक्तावियो पास ( Octavio Paz )मेक्सिको के लेखक व कवि थे. वे कुछ साल भारत में मेक्सिको के राजदूत भी रहे. उनके लेखन पर मार्क्सवाद, स्यूरेयालीज्म, एग्ज़िस्टेन्शलिज़म के साथ हिन्दू व बौध धर्मों का भी बहुत प्रभाव रहा. उनकी कविताओं व निबंधों के असंख्य संकलन छपे हैं व अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है. सैम्युएल बेकेट, एलीजाबेथ बिशप, मार्क स्ट्रैंड जैसे जाने-माने कवियों-लेखकों ने उनके लेखन का अंग्रेजी में अनुवाद किया है. सर्वंतेस प्राइज़ व 1990 के नोबेल पुरस्कार सहित उन्हें अनेक सम्मान मिले थे.
इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद एलियट वाइनबर्गर ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें