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होर्स एंड कैरिज, विन्सेंट वान गोग Horse and Carriage, Vincent Van Gogh |
गर्मियों के एक सुहावने दिन के अंत में
सड़क के पत्थरों पर
बह रहा था
एक घायल घोड़े का खून
और घोड़ा खड़ा था वहाँ
गाड़ी से खुला हुआ
बिना हिले
तीन टांगों पर
और चौथी टांग
चोट-लगी और टूटी-हुई
लटक रही थी
साथ ही
खड़ा था गाड़ीवान भी
बिना हिले
और टूटी-हुई-घड़ी-सी बेकार
गाड़ी भी
बिना हिले
और घोड़ा चुप था
घोड़ा कराह नहीं रहा था
घोड़ा हिनहिना नहीं रहा था
वह बस वहाँ था
वह इंतज़ार कर रहा था
और वह इतना सुन्दर और उदास और सहज था
और समझदार
कि उसे देख कर
आँसू रोक पाना मुश्किल था
आह
खोये हुए बागों
भूले हुए झरनों
धूप में नहाये हरे-हरे मैदानों
आह दर्द
दुःख की रहस्यमय दीप्ति
खून और छिटकी-हुई रौशनी
आहत सुन्दरता
संवेदना है तुमसे
संवेदना
-- याक प्रेवेर

इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
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