मंगलवार, सितंबर 11, 2012

बेकार ही में भरे एक गिलास की तरह...

ग्लास ऑफ़ वाइन, पिएर-ओग्यूस्त रेनोआ
Glass of Wine, Pierre Auguste Renoir
बेकार ही में भरे एक गिलास की तरह
जो मेज़ पर से कोई नहीं उठाता,
मेरे दुःख-विहीन मन में उमड़ता है
वह दुःख जो उसका अपना नहीं है.

वह अभिनीत करता है उदास स्वप्न
करने के लिए केवल उनका अनुभव
और बचाने के लिए स्वयं को उस दुःख से
जिससे भयभीत होने का वह ढोंग कर रहा है.

कल्पित कथा,
और महीन कागज़ में लिपटी
जिस मंच पर वह खेली जा रही है
वह लकड़ी का नहीं है,
वह नक़ल उतारती है दुखों के नृत्य की
ताकि घटित ना हो कुछ भी.


-- फेर्नान्दो पेस्सोआ



 फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने अपने ही नाम से लिखी थी, यह बताना ज़रूरी है क्योंकि अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नामों या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो यह है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग जीवनी, दर्शन, स्वभाव, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ  के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने  मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्रेरी में इनके सम्पादन का काम आज भी जारी है. यह कविता उनके संकलन 'सोंगबुक 'से है.
इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.

इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

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