रविवार, सितंबर 09, 2012

धूल

ला प्रोमेनाद, मार्क शगाल
La Promenade, Marc Chagall


हमनें क्या खो दिया, वह क्या था जो भीतर कहीं खो गया?
किसकी हैं ये दूरीयाँ जिन्होनें हमें अलग कर दिया था
और जो अब हमें बाँध रही हैं एक साथ?

क्या हम अभी भी एक हैं
या टुकड़े-टुकड़े हो गए हैं हम दोनों के? कितनी कोमल है यह धूल --
अब उसकी देह, और मेरी, इस क्षण में
एक ही हैं



-- अदुनिस



Adonis, Griffin Poetry Prize 2011 International Shortlist अली अहमद सईद अस्बार ( Ali Ahmed Said Asbar ), जो 'अदुनिस' ( Adonis )के नाम से लिखते हैं, सिरिया के प्रसिद्ध कवि व लेखक हैं. वे आधुनिक अरबी कविता के पथप्रदर्शक हैं, जिन्होंने पुरानी मान्यताओं से विद्रोह कर कविता के अपने ही नियम बनाये हैं. अब तक अरबी में उनकी 20से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनके अनेक कविता संग्रह अंग्रेजी में अनूदित किये जा चुके हैं. अभी हाल-फिलहाल में, अगस्त माह के आखिरी सप्ताह में ही उन्हें 2011 के  गेटे ( Goethe) पुरुस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें जल्द ही नोबेल प्राइज़ भी मिलेगा , साहित्य जगत में इसकी उम्मीद व अटकलें खूब हैं, वे कई बार नामित भी किये गए हैं. यह कविता उनके 2003 के संकलन 'बिगिनिन्ग्ज़ ऑफ़ द बॉडी, एंडज़ ऑफ़ द सी' से है.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद खालेद मत्तावा ने किया है.
इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू  तलवाड़

2 टिप्‍पणियां:

  1. विरह और दुराव की टीस की विलक्षण कविता जहाँ दूरी दोनों को बांध रही है.

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  2. हमने खो दी हैं अपनी-अपनी निजताएँ ,धुल बन कर ही हमने एक दूसरे से मिल सके ! अच्छी कविता ! बधाई रीनू जी !

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