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स्नो एंड मिस्ट, जॉन एटकिनसन ग्रिमशॉ Snow and Mist, John Atkinson Grimshaw |
और झरने लगे हवा से कुछ सलेटी-सा
कहना स्वयं से
कि तुम जारी रखोगे
चलना, सुनते रहोगे
उसी धुन को चाहे कहीं भी
पाओ स्वयं को तुम --
अँधेरे के गुम्बद के भीतर
या बर्फ की घाटी में
चाँद की चटक सफ़ेद टकटकी तले.
आज रात जैसे-जैसे ठण्ड बढ़े
बताना स्वयं को
जो जानते हो तुम जो
कुछ और नहीं, है धुन
जो बजाती है तुम्हारी हड्डियाँ
जब तुम चलते हो. और कम-से-कम
एक बार लेट पाओगे तुम
जाड़ों के तारों की मद्धम आंच तले.
और ऐसा हो अगर कि तुम
न बढ़ सको आगे न पीछे ही लौट सको
और पाओ स्वयं को वहाँ
जहाँ अंत में पाओगे तुम
कहना स्वयं से
अपने अंगों में से ठण्ड के उस अंतिम बहाव में
कि तुम जो हो उससे प्रेम करते हो तुम.
-- मार्क स्ट्रैन्ड

इस कविता का मूल अंग्रेजी से अनुवाद -- रीनू तलवाड़
रसूल हमजातोव की कविता याद आई. अगर हजार आदमी करते हैं तुमसे प्यार..
जवाब देंहटाएंउस कविता का आखिरी अंश इस कविता के आखिरी अंश से मिलता-जुलता है..
जाने क्यों वो कविता याद आ रही है. कहीं मिलेगी क्या?
ठण्ड के मौसम में जीवन को पहले की तरह चलाये रखना कठिन है मगर मन वही रहता है.हर धुन में खुद को पा लेना काव्यात्मक और सकारात्मक सोच है.
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