बुधवार, दिसंबर 12, 2012

दिन लौटता नहीं

सनसेट इन द स्टेप्स, आर्खिप कुइंडज्ही
Sunset in the Steps, Arkhip Kuindzhi
दिन नहीं लौटता, तुम कहते हो
लौटता है मगर उसका घाव

खून जो बहता है सूरज में से
जब वह दूर कहीं ढहता है
जानना चाहती हैं सभी भूली हुई देहें
कि क्या कुछ है धरती की सतह तले,
जो उन्हें एकत्रित करता है,
किसी भाव का अंश या केवल अन्धकार,
पत्थर की तरह जड़,
शायद उम्मीद और कुछ नहीं
है देह का गहरा घाव
स्मृति में सुलगती भविष्य-हीन चिंगारी
जब जाने लगोगे, बताना मत,
कि दिन का अंत हो रहा है.


-- क्लौद एस्तेबान



 क्लौद एस्तेबान (Claude Esteban) एक फ्रेंच कवि , निबंधकार व अनुवादक थे। वे फ्रेंच व स्पेनिश दोनों भाषाओं में सिद्धहस्त थे। पिछली सदी के दूसरे हिस्से के प्रमुख कवियों में से एक, वे अपने पीछे महत्वपूर्ण कृति छोड़ गए हैं। उन्होंने कला व कविता पर असंख्य निबंध लिखे व स्पैनिश भाषा के प्रमुख कवियों ओक्टावियो पास, बोर्खेस, लोर्का इत्यादि की कविताओं व लेखन का अनुवाद किया। आरम्भ में वे फ्रेंच कला व साहित्य की पत्रिकाओं में लेख लिखते रहे। 1968 में उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ --'ला सेजों देवास्ते '.इसके बाद उनके कई संकलन प्रकशित हुए, वे प्रसिद्द कलाकारों के लिए उनकी प्रदर्शनियों के कैटालोग के लिए प्रस्तावनाएँ लिखते रहे। स्पेनी कवि होर्खे गुइयें से उनकी अच्छी दोस्ती हो गई व उन्होंने उनके कृत्य का  फ्रेंच में खूब अनुवाद किया। 1984 में उन्हें अपनी गद्य कविताओं के लिए मालार्मे पुरूस्कार प्राप्त हुआ। कला में उन्हें गहरी रूचि रही और 1991 में उन्हें एडवर्ड हापपर के चित्रों से प्रेरित कविता संकलन 'सोलई दौन्ज़ युन पीएस वीद ' के लिए फ्रांस कल्चर प्राइज़ प्राप्त हुआ। उनके 13 कविता संकलन, कई निबंध व अनेक अनुवाद प्रकाशित हुए,. यह कविता उनके संकलन 'युन साल्व दावनीर' से है।
इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

1 टिप्पणी:

  1. उम्मीद को देह का घाव और भविष्य-हीन चिंगारी बताने वाली गहन चिंतन की कविता का सुंदर अनुवाद.

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