सोमवार, मार्च 25, 2013

अब क्या होगा?

जब तुम छोटी थीं,
हम सोते हुए देखते थे तुम्हें,
साँसों की लहरें
भरती थीं तुम्हारी छाती को.
कभी-कभी हम छिप जाते थे
तुम्हारी बच्ची-दीवार की, तुम्हारी
बच्ची आवश्यकताओं के नर्म पालने की
ओट में.
मुझे कितना अच्छा लगता था,
अपनी देह और दुनिया के बीच
तुम्हें उठा कर चलना.

अब तुम पेंसिलें छीलने लगी हो,
कदम रखने लगी हो
टिफ़िन बॉक्सों और छोटे डेस्कों के जंगल में.
जिन लोगों को मैंने कभी देखा तक नहीं
वे नाम से पुकारते हैं तुम्हें
और तुम हाथ हिल देती हो.

एक कमी सी लगने लगी है मुझे,
एक सिकुड़न,
जैसे-जैसे तुम्हारा गुलाबों भरा मैदान
फैल रहा है, फैलता जा रहा है...

अब समझ पा रही हूँ इतिहास को.
अब समझ पा रही हूँ अपनी माँ की
प्राचीन आँखें.


-- नाओमी शिहाब नाए 



 नाओमी शिहाब नाए ( Naomi Shihab Nye )एक फिलिस्तीनी-अमरीकी कवयित्री, गीतकार व उपन्यासकार हैं. वे बचपन से ही कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. फिलिस्तीनी पिता और अमरीकी माँ की बेटी, वे अपनी कविताओं में अलग-अलग संस्कृतियों की समानता-असमानता खोजती हैं. वे आम जीवन व सड़क पर चलते लोगों में कविता खोजती हैं. उनके 7 कविता संकलन और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक अवार्ड व सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अनेक कविता संग्रहों का सम्पादन भी किया है. 


इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

1 टिप्पणी: