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सेप्टेम्बर मार्निंग, अल्फ्रेड सिसली September Morning, Alfred Sisley |
लगता है तुम केवल एक नाम हो
जो बताता है तुम्हारे बारे में
चाहे तुम उपस्थित हो या न हो
और एक पल के लिए
ऐसा लगता है कि
तुम अभी भी हो ग्रीष्म
अभी भी हो भरी, पहचानी,
अनंत ग्रीष्म
मगर शीतल सुबहों में
लिए हो एक ताम्र झलक
और मुलिन की
देर से आई पीली पंखुड़ियाँ
फड़फड़ाती हैं डालियों पर
जो झुकी हुई हैं
दरारों वाली धरती पर पड़ती
अपनी छायाओं पर
मगर
तेजपात के बीजों के दाने
फुसफुसाते पंछी
वे सब जानते हैं
कि तुम आ गए हो
और तुम्हें छुपाने की या बाद के लिए
रख लेने कि कोई जगह नहीं है
तुम
जो जाते हो उनके साथ उड़कर
तुम जो ना
पूर्व हो ना पश्चात
तुम जो आते हो
नीले आलुबुखारों के संग
जो रात भर गिरते रहे हैं
ओस में सम्पूर्ण
-- डब्ल्यू एस मर्विन

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
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